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________________ १५८ जैनशासन 1 बुनियादी पत्थरोको भी उखाड़ कर फेका जाए। ऐसी अवस्थामे यदि हम कण्टकोसे बचे, तो गहरे गड्ढे अपनी गोदमे गिरा हमें सदाके लिए विना सुलाए न रहेंगे । एकान्तरूपसे युद्धमे गुणको ही देखनेवाला सारे ससारको भयकर विसूवियस ज्वालामुखी नही, पौराणिक जगत्मे वर्णित प्रलयकी प्रचण्ड ज्वालापुञ्जरूपमे परिणत कर देगा । उस सर्वसहारिणी अवस्थामे क्या आनन्द और क्या विकास होगा ? नीट्शेकी दृष्टिमे मनुष्य भूखे व्याघूके समान है। उसके अनुसार पशु-जगत्का मात्स्य-न्याय उचित कहा जा सकेगा । लेकिन, विवेकी और प्रबुद्ध मानवोका कल्याण पशुताकी ओर झुकनेमे नही है । इस विश्वमें महामानव वन हमे एक ऐसे कुटुम्वका निर्माण करना है, जिसमे रहने बाला देश, जाति आदिकी सकीर्ण परिधियोसे पूर्णतया उन्मुक्त हो और यथार्थमे जिसकी आत्मामे 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का अमूल्य सिद्धान्त दिद्य - मान हो । विख्यात लेखक लुई फिशरका कथन कितना वास्तविक है, हमने पिछले महायुद्धमें कैसरको पराजित किया था, तो पश्चात् हमें हिटलरकी प्राप्ति हुई । हिटलरके पराजयके उपरान्त यह सभव है कि हमे और भी क्षतिकारी हिटलर मिले। यह तव तक होगा, जब तक हम उस भूमि और वीजको ही नही समाप्त कर देते, जिससे हिटलर, मुसो - लिनी तथा अन्य लड़ाकू लोग पैदा होते है । " इस प्रसगमे जर्मन-विद्वान्की अपेक्षा प्रख्यात विद्वान् वैरि० सावरकर की हिंसा-अहिंसा सम्बन्धी चिन्तना भी विचारणीय है । वे लिखते हैं"हिंसा और अहिंसा के कारण दुनिया चलती है । अपनी-अपनी सीमाके "We defeated the Kaiser and got a Hitler. Following the defeat of Hitler, we may get a worse Hitler, unless we distroy the soil and seed out of which Hitlers, Mussolinees and militarists grow ," -Vide "Empire" by Louis Fischer P. 11.
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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