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________________ प्रबुद्ध-साधक १३१ दिखता है । एक बार "प्रबुद्ध भारत" मे छपा था कि एक एण्डरसन नामक अग्रेज हाथी पर सवार हो जयदेवपुरके जगलमे शिकार खेलने गया । वहा एक शेरको देख हाथी डरा । उसने साहवको नीचे गिरा दिया । एण्डरसनने शेरपर दो-तीन गोली चलाई, किन्तु निशाना चूक गया । इतने - में शेरने पीछा किया। प्राण बचानेको वह पासकी एक झोपडीमे पहुँचा, जहा एक दिगम्बर साधु रहा करते थे । साधुके इशारा करते ही शेर शान्त हो गया और कुछ देर बैठकर चुपचाप चला गया। जब एण्डरसनने नागा बाबासे इस आश्चर्यका कारण पूछा, तब साधुने कहा - " जिसके चित्तमे हिंसाका विचार नही है उसे शेर या सर्प कोई भी हानि नही पहुँचाते। तुम्हारे मनमे हिंसाका भाव है, इसलिए जगली जानवर तुमपर आक्रमण करते है ।" उस दिनसे एण्डरसनने शिकार खेलना छोड़ दिया और वह शाकाहारी वन गया। ढाका और चिटगावमे बहुतोने एण्डरसनके इस परिवर्तित रूपको देखा है । जयपुर राज्यके दीवान श्री अमरचन्द्रजी जैन बडे ज्ञानवान और सत प्रकृतिके महापुरुष थे । एक विशेष अवसर पर राज्यके अजायब घरके भूखे शेरके समक्ष, उन्होने अपने अहिंसा व्रतका परम आदर करते हुए, मास न रखवा कर मिठाई रखवाई और शेरसे कहा - "यदि तुझे भूख शात करना है, तो यह मिठाई भी तेरे लिए उपयोगी है, किंतु यदि मास ही खाना है तो मुझको खुशीसे खा सकता है" इस अहिंसापूर्ण प्रेम भरी वाणीका शेरपर बडा प्रभाव पडा और उसने सबको चकित करते हुए शान्त भावसे मिठाई खा ली। इस अहिंसाके द्वारा जो आत्म-बल जागृत १ प्रबुद्ध भारत अंग्रेजी मासिक १९३४, पृ० १२५-२६ “One, who has no Himsa, is never injured by tigers or snakes. Because you have feeling of Himsa in your mind you are attacked by wild animals".
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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