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________________ संयम विन घडिय म इक्क जाहु कदाचित तीन पुण्योदयसे अनुकूल सामग्री और सन्तोष-प्रद वातावरण 'मिला, तो लालसाओकी वृद्धि उसे बुरी तरह वेचैन बनाती है और उस अन्तर्वालासे यह आत्मा वैभव, विभूतिके द्वारा प्रदत्त विचित्र यातना भोगा करता है। एक बडे धनीको लक्ष्य करते हुए हजरत अकबर कहते है “सेठ जीको फिक्र थी एक एकके दस कीजिए। मौत आ पहुंची कि हजरत जान वापिस कीजिए॥" एक और उर्दू भाषाका कवि प्राण-पूर्ण वाणीमे ससारकी असलियतको चित्रित करते हुए कहता है "किसीका कंदा नगीने पै नाम होता है। किसीकी जिंदगीका लनएज जाम होता है। अजब मुकाम है यह दुनिया कि जिसमें शामोशहर किसीका कूच-किसीका मुकाम होता है।" जब विषय-भोग और जगत्की यह स्थिति है, कि उसके सुखोमे स्थायित्व नही है-वास्तविकता नहीं है और वह विपत्तियोका भण्डार है, तव सत्पुरुष और कल्याण-साधक उन सुखोके प्रति अनासक्त हो आत्मीक ज्योतिके प्रकाशमें अपने जीवन नौकाको ले जाते है, जिसमे किसी प्रकारका खतरा नहीं है। इस प्राणीमे यदि मनोवलको कमी हुई तो विषयवासना इसे अपना दास बना पद-दलित करनेमे नहीं चूकती। इस मनको दास बनाना कठिन कार्य है। और यदि मन वशमे हो गया तो इन्द्रिया, वासनाएँ उस विजेताके आगे आत्मसमर्पण करती ही है , यही कारण है कि सुभाषितकारको यह कहना पडा "मन एव मनुष्याणां कारण बन्धमोक्षयोः।" __ मनो-जयके लिए आत्माको बहुत वलिष्ठ होना चाहिए। ससारकी चमक दमक और मोहक सामग्रीको पा जो आपेके वाहर हो जाता है, वह आत्म-विकासके क्षेत्रमे असफल होता है। मनो-जयकी कठिनताको
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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