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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
सुधार के उपाय सोचे और किये भी जा रहे हैं, परन्तु मारवाड़ तो इस समय में ऐसा हो रहा है कि मानों नशा पीकर गाफिल होकर घोर निद्रा के वशीभूत हो रहा हो, इस लिये वर्त्तमान में तो इस मारवाड़ देशकी सन्तति का सुधार होना अति कठिन प्रतीत होता है, भविष्यत् के लिये तो सर्वज्ञ जान सकता है कि क्या होगा, अस्तु ।
प्रिय पाठकगण ! वर्तमान में स्त्रियों में शिक्षा न होने से अत्यन्त हानि हो रही है अर्थात् गृहस्थसुख का नाश हो रहा है विद्या और धर्म आदि सद्गुणों का प्रचार रुक जाने से देशकी दशा बिगड़ रही है तथा नियमानुसार बालकों का पालन पोषण और 'शिक्षा न होने से भविष्यत् में और भी बिगाड़ तथा हानि की पूरी सम्भावना हो रही हैं, इस लिये आप लोगों का यह परम कर्तव्य है कि इस भयंकर हानि से बचने का पूरा प्रयत्न करें, जो अबतक हानि हो चुकी है उस के लिये तो कुछ भी प्रयत्न नहीं हो सकता है-इस लिये उस के लिये तो शोक करना भी व्यर्थ है, हां भविष्यत् में जो हानि की संभावना है उस हानि के लिये हम सब को प्रयत्न करना अति आवश्यक है और उस के लिये यदि आप सब चाहें तो प्रयत्न भी हो सकता है और वह प्रयत्न केवल यही है कि--- हम सब अपनी स्त्रियों बहिनों और पुत्रियो को वह शिक्षा देवें कि जिस से वे सन्तान रक्षाके नियमों को ठीक रीति से समझ जावें, क्योंकि जब स्त्रियों को सन्तानरक्षा के नियमों का ज्ञान ठीक रीति से हो जावेगा और वे बालकों की उन्ही नियमों के अनुसार रक्षा और शिक्षा करेंगी तब अवश्य बालक नीरोग; सुखी; चतुर; वलिष्ठ; कदावर (बड़े कद के; ) तेजस्वी; पराक्रमी; शूर वीर और दीर्घायु होंगे और ऐसे सन्तानों के होने से शीघ्रही कुटुम्ब; कुल; ग्राम और देशका उद्धार होकर कल्याण हो सकेगा इसमें कुछ भी सन्देह नही है ।
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सन्तानरक्षा के नियम यद्यपि अनेक वैद्यक आदि ग्रन्थों में बतलाये गये हैं- जिन्हें बहुत से सज्जन जानते भी होंगे तथापि प्रसंगवश हम यहां पर सन्तानरक्षा के कुछ सामान्य नियमों का वर्णन करना आवश्यक समझते है - उनमें से गर्मदशासम्बन्धी कुछ नियमों का तो संक्षेप से वर्णन पूर्व कर चुके है अब सन्तान के उत्पत्ति समय से लेकर कुछ आवश्यक नियमों का वर्णन स्त्रियों के ज्ञान के लिये किया जाता है:
१ - नाल --- गर्भस्थान में बालक का पोषण नाल से ही होता है, जब बालक उत्पन्न होता है तब उस नालका एक सिरा ( छोर वा किनारा ) भीतर ओरतक लगा हुआ होता है इस लिये नाल को नाभिसे ढाई वा तीन इश्च के अनन्तर ( फासले ) पर चारों तरफ से मुलायम कपड़े या रुई से लपेट कर एक मज़बूत डोरीसे कसकर बांध लेना चाहिये फिर ओर तरफ का नाल का सिरा काट देना चाहिये, अब जो ढाई वा तीन इञ्चका