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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ नियम विरुद्ध मनमानी रीति पर चला कर वालक का पालन पोषण करती हैं, इसी का फल वर्तमान में यह देखा जाता है कि-सहस्रों बालक असमय में ही मृत्युके आधीन हो जाते हैं और जो बेचारे अपने पुण्य के योग से मृत्युके पास से बचमी जाते हैं तो उन के शरीर के सब बन्धन निर्वल रहते हैं, उन की आकृति फीकी सुस्त और निस्तेज रहती है, उन में शारीरिक मानसिक और आत्मिक वल बिलकुल नहीं होता है।
देखो ! यह खाभाविक (कुदरती) नियम है कि संसार में अपना और दूसरों का जीवन सफल करने के लिये अच्छे प्राणी की आवश्यकता होती है, इसलिये यदि सम्पूर्ण प्रजा की उन्नति करना हो तो सन्तान को अच्छा प्राणी वनाना चाहिये, परन्तु बड़े ही अफ़सोस की बात है कि इस विषय में वर्तमान में अत्यन्त ही असावधानता (लापरवाही) देखी जाती है। __हम देखते हैं कि-घोड़ा और बैल आदि पशुओं के सन्तान को बलिष्ठ; चालाक; तेज़
और अच्छे लक्षणों से युक्त बनाने के लिये तो अनेक उपाय तन मन धन से किये जाते हैं, परन्तु अत्यन्त शोक का विषय है कि इस संसार में जो मनुष्य जाति मुख्यतया सुख और सन्तोष की देनेवाली है तथा जिसके सुधरने से सम्पूर्ण देश के कल्याण की सम्भावना और आशा है उस के सुधार पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया जाता है! __पाठकगण इस विषय को अच्छे प्रकार से जान सकते हैं और इतिहासोंके द्वारा जानते भी होंगे कि-जिन देशों और जिन जातियों में सन्तान की वाल्यावस्था पर ठीक ध्यान दिया जाता है तथा नियमानुसार उसका पालन पोषण कर उसको सन्मार्ग पर चलाया जाता है उन देशों और उन जातियों में प्रायः सन्तान अधम दशा में न रह कर उच्च दशाको प्राप्त हो जाता है अर्थात् शारीरिक मानसिक और आत्मिक आदि बलों से परिपूर्ण होता है, उदाहरण के लिये इंग्लैंड आदि देशों को और अंग्रेज तथा पारसी आदि जातियों में देख सकते है कि उन की सन्तति प्रायः दुर्व्यसनों से रहित तथा सुशिक्षित होती है और वल बुद्धि आदि सब गुणों से युक्त होती है, क्योंकि इन लोगों में प्रायः बहुत ही कम मूर्ख निर्गुणी और शारीरिक आदि वलों से हीन देखे जाते है, इसकी
कारण केवल यही है कि उन की बाल्यावस्था पर पूरा ध्यान दिया जाता है अर्थात् . नियमानुसार बाल्यावस्था में सन्तति का पालन पोषण होता है और उस को श्रेष्ठ शिक्षा
आदि दी जाती है। ___ यद्यपि पूर्व समय में इस आर्यावर्त देशमें भी माता पिता का ध्यान सन्तान को बलिष्ठ
और सुयोग्य बनाने का पूरे तौर से था इसलिये यहां की आर्यसन्तति सब देशों की अपेक्षा सब बलों और सब गुणों में उन्नत थी और इसी लिये पूर्वसमयमें इस पवित्र भूमि में अनेक भारतरत्न हो चुके हैं, जिन के नाम और गुणों का स्मरण कर ही हम सब अपने