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तृतीय अध्याय ॥ फफूंदीवाला, सड़ा हुआ, सुपारी, मिट्टी, धूल, राख और कोयला आदि पदार्थ बहुत विकार करते हैं इस लिये यदि इन के खाने को मन चले तथापि मन को समझा कर
रोक कर) इन को नहीं खाना चाहिये, गर्मवती को तीक्ष्ण (तेज) जुलाब भी नहीं लेना चाहिये, यदि कभी कुछ दर्द हो जावे तो किसी अज्ञ (अजान, मूर्ख) वैद्य की दवा नहीं लेनी चाहिये किन्तु किसी चतुर वैद्य वा डाक्टर की सलाह लेकर दर्द मिटने का उपाय करना चाहिये किन्तु दर्द को बढने नहीं देना चाहिये।
गर्भवती को चाहिये कि सर्दी और गीलेपन से शरीर को बचावे, जागरण न करे, जल्दी सोवे और सूर्योदयसे पहिले उठे, मनको दुःखित करनेवाले चिन्ता और उदासी आदि कारणों को दूर रक्खे, भयंकर खांग तथा चित्र आदि न देखे, अन्य गर्मिणी स्त्री के प्रसवसमय में उस के पास न जावे, अपनी प्रकृति को शान्त रक्खे, जो बातें नापसन्द' हों उन को न करे, अच्छी २ बातों से मन को खुश रक्खे, धर्म और नीति की बातें सुन के मन को दृढ करे, यदि मन में साहस और उत्साह न हो तो उसमें साहस और उत्साह लावे ( उत्पन्न करे), जिन बातों के सुनने से कलह अथवा भय उत्पन्न हो ऐसी वातें न सुने, नियमानुसार रहे, अलंकार का धारण करे, सावधानता से पति के प्रिय कार्यों में प्रेम रक्खे, अपने धर्म में प्रीति रक्खे, पवित्रता से रहे, मधुरता के साथ धीमे खर से बोले, परमेश्वर की भक्ति में चित्त रक्खे, मनोवृत्ति को धर्म तथा नीतिकी ओर लाने के लिये अच्छे २ पुस्तक बांचे, पुष्पों की माला पहरे, सुगन्धित तथा चन्दन आदि पदार्थोंका लेप करे, खच्छ घर में रहे, परोपकार और दान करे, सब जीवों पर दया क्ले, साठ श्वशुर तथा गुरुजन आदि की मर्यादा को स्थिर रक्खे तथा उन की सेवा करे, कमाल (मस्तक) में कुंकुम (रोरी या सेंदुर) का टीका (बिन्दु) तथा आंखों में काजल आदि सौभाग्यदर्शक चिह्नों को धारण करे, कोमल और खच्छ वस्त्रसे आच्छादित विस्तरपर सोवे तथा वैठे, अच्छी तथा गुणवाली वस्तुओं पर अपना भाव रक्खे, धार्मिक, नीतिमान् पराक्रमी और बलिष्ठ आदि उत्तम गुणवान् स्त्री पुरुषों के चरित्र का मनन करे तथा ऐसा ही उत्तम गुणों से सम्पन्न और रूपवान् मेरे भी सन्तान हो ऐसी मन में भावना रक्खे, उत्तम चरित्रों से प्रसिद्ध स्त्री पुरुषों के, मनोहर पशु और पक्षियों के तथा उत्तम २ वृक्षों के सुन्दर और सुशोमित चित्रों आदि से अपने सोने तथा बैठने के कमरे को मन की प्रसनता के लिये सुशोमित रक्खे, सुन्दर और मनोरञ्जन (मन को खुश करनेवाले ) गीत गाकर और सुन कर मन को सदा आनन्द में रक्खे, जिस से अनायास (अचानक) ही मन में उद्वेग अथवा अधिक हर्ष और शोक उत्पन्न हो जावे ऐसा कोई पदार्थ न देखे, न ऐसी बात सुने और न ऐसे किसी कार्य को करे, किसी बात पर पश्चाताप (पछतावा) न करे तथा पश्चाताप को पैदा करने वाले आचरण (वर्चाव, व्यवहार) को यथाशक्य