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________________ जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ 18 ६ यदि त् से परे, घ्, द्, घ्, व्, भू, यू, इ, वू, अथवा स्वर वर्ण रहे तो त् के स्थान में द् हो जाता है || ७ यदि अनुखार से परे अन्तस्थ वा ऊष्म वर्ण रहे तो कुछ भी विकार नहीं होता | ८ यदि अनुखार से परे किसी वर्ग का कोई वर्ण रहे तो उस अनुखार के स्थान में उसी वर्ग का पांचवां वर्ण हो जाता है | ९ यदि अनुखार से परे खर वर्ण रहे तो मकार हो जाता है ॥ सत् + भक्ति - सद्भक्ति । जगत् + ईश - जगदीश । सत् + आचार सदाचार | सत् +-ध- सद्धर्म, इत्यादि ॥ सं+हार - संहार | सं + यम संयम । सं+ रक्षण-संरक्षण । सं+वत्सर = संवत्सर | संगति-सङ्गति । अपरं + पार = अपरम्पार । अहं + कार - अहङ्कार | सं+चार - सञ्चार । सं+बोधन = सम्बोधन, इत्यादि ॥ सं+आचार - समाचार | सं + उदाय - समुदाय | सं+ ऋद्धि-समृद्धि, इत्यादि ॥ विसर्गसन्धि ॥ - इस सन्धि के भी बहुत से नियम है उनमें से कुछ दिखाते हैं: नम्बर ॥ नियम ॥ परे १ यदि विसर्ग से परे प्रत्येक वर्ग का ती सरा, चौथा, पांचवां अक्षर, अथवा यू, इ, लू, वू, ह्, हो तो ओ हो जाता है। २ यदि इकार उकार पूर्वक विसर्ग से क्, ख्, ट्, व्, प्, फू, रहे तो मूर्धन्य षू, च्, छ् रहे तो तालव्य शू और त्, थ, रहे तो दन्त्य स् हो जाता है | ३ यदि इकार उकार पूर्वक विसर्ग से परे प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवां अक्षर वा स्वर वर्ण रहे तो इ होता है ॥ विसर्गद्वारा शब्दों का मेल | मनः+गत - मनोगत | पयः + घर = पयोधर | मनः+हर - मनोहर । अहः + भाग्य = अहो - भाग्य । अधः + मुख - अधोमुख, इत्यादि || निः+ कारण निष्कारण । निः+चल=निश्चल । निः+तार = निस्तार । निः +-फलनिष्फल | निः+छल=निश्छल । नि·+पाप= निष्पाप | निः+टक=निष्टक, इत्यादि ॥ निः+विन = निर्विघ्न । निः +-बल - निर्बलनिः+मल = निर्मल । निः+ जल= निर्जल । निः+ धन-निर्धन, इत्यादि ॥ निः+रस - नीरस । निः+रोग= नीरोग । निः+ राग-नीराग । गुरुः +रम्यः गुरुरम्यः, इत्यादि ॥ परे ४ यदि इकार उकार पूर्वक विसर्ग से रेफ हो तो विसर्गका लोप होकर पूर्व स्वर को दीर्घ हो जाता है ॥ 1 यह प्रथम अध्यायका वर्णविचार नामक तीसरा प्रकरण समाप्त हुआ ||
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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