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________________ १०६ जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ ऋतुधर्म के समय बहुत से समझदार हिन्दू, पारसी, मुसलमान तथा अंग्रेज़ आदि वर्गोंमें स्त्रियों को अलग रखने की रीति जो प्रचलित है-वह बहुतही उत्तम है क्योंकि उक्त । दशा में स्त्रियों को अलग न रखने से गृहसम्बंधी कामकाज में सम्बंध होने से बहुत खराबी होती है, वर्तमानमें उक्त व्यवहारके ठीक रीति से न होने का कारण केवल मनुष्य जाति की लुब्धता तथा मनकी निर्बलता ही है, किन्तु उचित तो यही है कि रजखला स्त्रियोंको अतिस्वच्छ, प्रकाशयुक्त, सूखे तथा निर्मल स्थान में गृह से पृथक् रखने का प्रबंध करना चाहिये किन्तु दुर्गन्धयुक्त तथा प्रकाशरहित स्थान में नहीं रखना चाहिये । ऋतुधर्म के समय स्त्रियों को चाहिये कि मलीन कपड़े न पहरे, हाथ पैर सूखे और गर्म रक्खें, हवा में तथा भीगी हुई ज़मीन पर न चलें, खुराक अच्छी और ताजी खावे, मन को निर्मल रक्खें, ऋतुधर्म के तीन दिनों में पुरुष का मुख भी न देखें, स्नान करने की बहुत ही आवश्यकता पड़े तो सान करें परन्तु जलमें बैठकर स्नान न करें किन्तु एक जुदे पात्रमें गर्म जल भर के खान करें और ठंढी पवन न लगने पावे इसलिये शीघ्र ही कोई स्वच्छ वस्त्र अथवा ऊनी वस्त्र पहरलें परन्तु विशेष आवश्यकता के विना सान न करें। रजोदर्शन के समय योग्य सम्भाल न रखने से बालक पर पड़ने वाला असर ॥ रजखला स्त्री के दिन में सोने से उस के जो गर्भ रह कर बालक उत्पन्न होता है वह अति निद्रालु ( अत्यन्त सोनेवाला ) होता है, नेत्रों में अञ्जन ( काजल, सुर्मा ) के आंनने (लगाने ) से अन्धा, रोने से नेत्र विकारवाला और दुःखी स्वभाव का, तेलमर्दन करने से कोढ़ी, हँसने से काले ओठ दाँत जीम और तालवाला, बहुत बोलनेसे प्रलापी ( वकवाद करनेवाला ) बहुत सुनने से बहिरा, जमीन कुचरने (करोदने ) से आलसी, पवन के अति सेवन से गैला (पागल ), बहुत मेहनत करनेसे न्यूनांग (किसी अंग से रहित), नख काटने से खराब नखवाला, पात्रों (तांबे आदिके वर्तनों) के द्वारा जल पीने से उन्मत्त और छोटे पात्र से जल पीनेसे ठिंगना होता है, इसलिये स्त्री को उचित है किऋतुधर्म के समय उक्त दोषों से बचे कि जिस से उन दोषों का बुरा प्रभाव उस के सन्तान पर न पड़े। इसके सिवाय रजखला स्त्री को यह भी उचित है कि-मिट्टी काष्ठ तथा पत्थर आदि के पात्र में भोजन करे, अपने ऋतुधर्म के रक्त (रुधिर) को देवस्थान गौओंके बाड़े और जलाशयमें न डाले, ऋतुधर्म के समय में तीन दिन के पहिरे हुए जो वस्त्र हों उन को चौथे दिन धो डाले तथा सूर्य उदय होने के दो या तीन घण्टे पीछे गुनगुने (कुछ गर्म) पानी से खान करे तथा स्नान करने के पश्चात् सब से प्रथम अपने पति का मुख देखे,
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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