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________________ १०० जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ विचार कर परमार्थ का कार्य सदा करती रहे, पतिके कुशल समाचार मंगाती रहे, [ इत्यादि सब व्यवहार पतिके परदेश में जाने पर साध्वी स्त्रियों को वर्तना चाहिये, यही पतिव्रता स्त्रियों का धर्म है और इसी प्रकार से बर्ताव करने वाली स्त्री पति, सासु और श्वशुर आदि सब को प्रिय लगती है तथा लोक में भी उस की कीर्ति होती है । - वर्तमान समय में बहुत सी स्त्रियां यह नहीं जानती है कि पति के विदेश में जाने पर उन को किस प्रकार से वर्त्तना चाहिये और इस के न जाननेसे वे अपने सत्य व्रत को भंग करने वाले स्वतन्त्रता के व्यवहार को करने लगती है, यह बड़े ही अफ़सोस की बात है, क्योंकि केवल शरीर के अल्प सुख के लिये अपना अकल्याण करना, कुदरती नियम को तोड़ कर पतिकी अप्रिय बनकर अपराधका भार अपने शिरपर रखना तथा लोगों में निंदापात्र बनना बहुत ही खराब है, देखो । मोती का पानी और मनुष्य का पानी नष्ट हो जाने पर फिर पीछे नहीं आसकता है, इस लिये समझदार स्त्रियों को उचित है कि- अपने जीवन के सुखके मुख्य पाये रूप प्रेम को पति के संयोग और वियोग में भी एक सरीखा और अखण्ड रक्खे, पतिके विदेश से वापिस आने तक पतित्रता के नियमों का पालन कर सदाचरण में वर्ताव करे, क्योंकि इस प्रकार चलनेसे ही पतिपत्नी में अखण्ड प्रेम रह सकता है और अखंड प्रेम का रहना ही उन के लिये सर्वथा और सर्वदा सुखदायक है || यह तृतीय अध्याय का—स्त्री पुरुषधर्म नामक प्रथम प्रकरण समाप्त हुआ || - दूसरा प्रकरण रजोदर्शन ॥ · अर्थात् स्त्रीका ऋतुमती होना ॥ रजोदर्शन - स्त्री का कन्या भाव से निकल कर स्त्री - अवस्था ( तरुणावस्था ) में आने का चिह्न है, यह रजोदर्शन स्त्री के गर्भाशयसे प्रतिमास नियमित समय पर होता है और यह एक प्रकार का रक्तस्राव है, इसीलिये इसको रक्तस्राव, ऋतुस्राव, अधोवेशन, मासिकधर्म, पुष्पभाव और ऋतुसमय आदि भी कहते हैं ॥ रजोदर्शनसे होनेवाला शरीर में फेरफार ॥ ऋतुस्राव होने के समय स्त्री का शरीर गोल और भरा हुआ मालूम होता है, शरीर के भिन्न २ भागों में चरबी की वृद्धि हो जाती है, उस के मनकी शक्ति बढती है, शरीर के भाग स्थूल हो जाते हैं, स्तन मोटे तथा पुष्ट हो जाते है, कमर स्थूल हो जाती है, मुख और चेहरा जासूस रंगका दिखलाई देने लगता है, आंखें विशेष चपल हो जाती हैं, व्यव
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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