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जनसम्प्रदायशिक्षा ||
अवश्य आनन्द की प्राप्ति हो सकती है, क्योंकि खरोदय के ज्ञान में मन और इन्द्रियों का रोकना आवश्यक होता है ।
यद्यपि प्रथम अभ्यास करने में गृहस्थों को कुछ कठिनता अवश्य मालूम होगी परन्तु थोड़ा बहुत अभ्यास हो जाने पर वह कठिनता आप ही मिट जावेगी, इस लिये आरम्भ में उस की कठिनता से भय नहीं करना चाहिये किन्तु उस का अभ्यास अवश्य करना ही चाहिये, क्योंकि - यह विद्या अति लाभकारिणी है, देखो ! वर्त्तमान समय में इस देश के निवासी श्रीमान् तथा दूसरे लोग अन्यदेशवासी जनों की वनाई हुई जागरणघटिका ( जगाने की घड़ी) आदि वस्तुओं को निद्रा से जगाने आदि कार्य के लिये द्रव्य का व्यय कर के लेते है तथा रात्रि में जितने बजे पर उठना हो उसी समय की जगाने की चावी लगा कर घड़ी को रख देते है और ठीक समय पर घड़ी की आवाज़ को सुन कर उठ बैठते है, परन्तु हमारे प्राचीन आर्यावर्त्तनिवासी जन अपनी योगादि विद्या के वल से उक्त जागरण आदि का सब काम लेते थे, जिस में उन की एक पाई भी खर्च नहीं होती थी । ( प्रश्न ) आप इस बात को क्या हमें प्रत्यक्ष कर आर्यावर्त्तनिवासी प्राचीन जन अपनी योगादि विद्या के बल से सब काम लेते थे ? (उत्तर) हाँ, हम अवश्य बतला सकते है, लिये हितकारी इस प्रकार की बातों का प्रकट करना हम अत्यावश्यक समझते हैं, यद्यपि बहुत से लोगों का यह मन्तव्य होता है कि - इस प्रकार की गोप्य बातों को प्रकट नहीं करना चाहिये परन्तु हम ऐसे विचार को बहुत तुच्छ तथा सङ्कीर्णहृदयता का चिह्न समझते है, देखो ! इसी विचार से तो इस पवित्र देश की सब विद्यायें नष्ट हो गईं।
बतला सकते है किउक्त जागरण आदि का
क्योंकि - गृहस्थों के
पाठकवृन्द ! तुम को रात्रि में जितने बजे पर उठने की आवश्यकता हो उस के लिये ऐसा करो कि सोने के समय प्रथम दो चार मिनट तक चित्त को स्थिर करो, फिर विछौने पर लेट कर तीन वा सात बार ईश्वर का नाम लो अर्थात् नमस्कारमत्र को पढो, फिर अपना नाम ले कर मुख से यह कहो कि हम को इतने बजे पर ( जितने बजे पर तुम्हारी उठने की इच्छा हो ) उठा देना, ऐसा कह कर सो जाओ, यदि तुम को उक्त कार्य के बाद दश पाँच मिनट तक निद्रा न आवे तो पुनः नमस्कारमन्त्र को निद्रा आने तक मन में ही (होठों को न हिला कर ) पढते रहो', ऐसा करने से तुम रात्रि में अभीष्ट समय पर जाग कर उठ सकते हो, इस में सन्देह नही है ? ॥
१ निद्रा के आने तक पुन मन मन्त्र पढ़ने का तात्पर्य यह है कि - ईश्वरनमस्कार के पीछे मन को अनेक बातों में नहीं ले जाना चाहिये अर्थात् अन्य किसी बात का स्मरण नहीं करना चाहिये ॥
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'२ - हाथकलन के लिये आरसी की क्या आवश्यकता है अर्थात् इस वात की जो परीक्षा करना चाहे वह कर सकता है ||