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________________ ६७२ जैनसम्प्रदायशिक्षा || पर प्रथम से ही विमलशाह के बनवाये हुए श्री आदिनाथ खामी के भव्य देवालय के समीप में ही संगमरमर पत्थर का एक सुन्दर देवालय बनवाया तथा उस में श्री नेमिनाथ भगवान् की मूर्ति स्थापित की । उक्त दोनों देवालय केवल संगमरमर पाषाण के बने हुए हैं और उन में प्राचीन आर्य लोगों की शिल्पकला के रूप में रत्न भरे हुए हैं, इस शिल्पकला के रत्नभण्डार को देखने से यह बात स्पष्ट मालूम हो जाती है कि- हिन्दुस्थान में किसी समय में शिल्पकला कैसी पूर्णावस्था को पहुँची हुई थी । इन मन्दिरों के बनने से वहाँ की शोभा अकथनीय हो गई है, क्योंकि - प्रथम तो आबू ही एक रमणीक पर्वत है, दूसरे ये सुन्दर देवालय उस पर बन गये हैं, फिर मला शोभा की क्या सीमा हो सकती है? सच है - "सोना और सुगन्ध" इसी का नाम है। तारीफ थी, देखिये ! यहाँ के जैन मन्दिरों के विषय में उन के कथन का सार यह है - "यह वात निर्विवाद है कि इस भारतवर्ष के सर्व देवालयों में ये आबू पर के देवालय विशेष भव्य हैं और ताजमहल के सिवाय इन के साथ मुकाविला करने वाली दूसरी कोई भी इमारत नहीं है, धनाढ्य भक्तों में से एक के खड़े किये हुए आनन्ददर्शक तथा अभिमान योग्य इस कीर्तिस्तम्भ की अनहद सुन्दरता का वर्णन करने में कलम अशत है” इत्यादि, पाठकगण जानते ही हैं कि- कर्नल टाड साहब ने राजपूताने का इतिहास बहुत सुयोग्य रीति से लिखा है तथा उन का लेख प्रायः सब को मान्य है, क्योंकि जो कुछ उन्हों ने लिखा है वह सव प्रमाणसहित लिखा है, इसी लिये एक कवि ने उन के विषय मे यह दोहा कहा - " टाड समा साहिव विना, क्षत्रिय यश क्षय थात ॥ फार्वस सम साहिब विना, नहि उधरत गुजरात" ॥ १ ॥ अर्थात् यदि टाड साहब न लिखते तो क्षत्रियों के यश का नाश हो जाता तथा फास साहब न लिखते तो गुजरात का उद्धार नहीं होता ॥ १ ॥ तात्पर्य यह है कि--राजपूताने के इतिहास को कर्नल टाड साहब ने और गुजरात के राजाओं के इतिहास को मि० फार्वस साहब ने बहुत परिश्रम करके लिखा है ॥ श्राविका सुन्नु कुमारी और १- इस पवित्र और रमणीक स्थान की यात्रा हम ने संवत् १९५० के कार्तिक कृष्ण ७ को की थी तथा दीपमालिका (दिवाली) तक यहाँ ठहरे थे, इस यात्रा में मकसूदाबाद निवासी राय बहादुर श्रीमान् श्री मेघराज जी कोठारी के ज्येष्ठ पुत्र श्री रखाल बावू स्वर्गवासी की धर्मपत्नी उन के मामा बच्छावत श्री गोविन्दचन्द जी तथा नौकर चाकरों सहित कुल सात आदमी थे, ( इन की अधिक विनती होने से हमें भी यात्रासंगम करना पड़ा था ), इस यात्रा के करने में आवू, शत्रुक्षय, गिरनार, भोयणी और राणपुर आदि पश्चतीर्थी की यात्रा भी बड़े आनन्द के साथ हुई थी, इस यात्रा में इस (आ) स्थान की अनेक बातों का अनुभव हमें हुआ उन में से कुछ बातों का वर्णन हम पाठकों के ज्ञानार्थ यहाँ लिखते हैं: आवू पर वर्त्तमान वस्ती - आबू पर वर्तमान में वस्ती अच्छी है, यहाँ पर सिरोही महाराज का एक अधिकारी रहता है और वह देलवाड़ा (जिस जगह पर उक्त मन्दिर बना हुआ है उस को इसी देलवाड़ा' नाम से कहते हैं) को जाते हुए यात्रियों से करें (महसूल) वसूल करता है, परन्तु साधु, यती,
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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