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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ राज नामक तीन पुत्र हुए, इन में से ज्येष्ठ पुत्र बच्छराज जी अपने भाइयों को साथ लेकर मण्डोवर नगर में राव श्री रिडमल जी के पास जा रहे और राव रिड़मल जी ने वच्छराज जी की बुद्धि के अद्भुत चमत्कार को देख कर उन्हें अपना मन्त्री नियत कर लिया, बस बच्छराज जी भी मन्त्री बन कर उसी दिन से राजकार्य के सब व्यवहार को यथोचित रीति से करने लगे।
कुछ समय के बाद चित्तौड़ के राना कुम्भकरण में तथा राव रिड़मल जी के पुत्र जोषाः जी में किसी कारण से आपस में वैर बँध गया, उस के पीछे राव रिड़मल जी और मन्त्री बच्छराज जी राना कुम्भकरण के पास चित्तौड़ में मिलने के लिये गये, यद्यपि वहां जाने से इन दोनों से राना जी मिले झुले तो सही परन्तु उन (राना जी) के मन में कपट था इस लिये उन्हों ने छल कर के राव रिड़मल जी को धोखा देकर मार डाला, मन्त्री बच्छराज इस सर्व व्यवहार को जान कर छलचल से वहाँ से निकल कर मण्डोर में आ गये।
राव रिड़मल जी की मृत्यु हो जाने से उन के पुत्र जोधा जी उन के पाटनसीन हुए और उन्हों ने मन्त्री बच्छराज को सम्मान देकर पूर्ववत् ही उन्हें मन्त्री रख कर राजकाज सौप दिया, जोधा जी ने अपनी वीरता के कारण पूर्व वैर के हेतु राना के देश को उनाड़ कर दिया और अन्त में राना को भी अपने वश में कर लिया, राव जोधा जी के जो नर्वरंग वे रानी थी उस रत्नगर्भा की कोख से विकम (बीका जी) और बीदा नामक दो पुत्ररत हुए तथा दूसरी रानी जसमादे नामक हाड़ी थी, उस के नीबा, सूजा और सातल नामक तीन पुत्र हुए, बीका जी छोटी अवस्था में ही बड़े चञ्चल और बुद्धिमान् थे इस लिये उन के पराक्रम तेज और बुद्धि को देख कर हाडी रानी ने मन में यह विचार कर कि बीका की विद्यमानता में हमारे पुत्र को राज नही मिलेगा, अनेक युक्तियों से राव जोधा जी को वश में कर उन के कान भर दिये, राव जोधा जी बड़े बुद्धिमान् थे अतः उन्हों ने थोड़े ही में रानी के अभिप्राय को अच्छे प्रकार से मन में समझ लिया, एक दिन दर्बार में भाई बेटे और सर्दार उपस्थित थे, इतने ही में कुँवर बीका जी भी अन्दर से आ गये और मुजरा कर अपने काका कान्धल जी के पास बैठ गये, दबार में राज्यनीति । के विषय में अनेक बातें होने लगी, उस समय अवसर पाकर राव जोधा जी ने यह कहा
१-बच्छावतों के कुल के इतिहास का एक रास बना हुभा है जो कि बीकानेर के बडे उपाश्रय (उपासरे) में महिमामक्ति ज्ञानभण्डार में विद्यमान है, उसी के अनुसार यह लेख लिखा गया है, इस के सिवाय-मारवाडी भाषा मे लिखा हुमा एक लेख भी इसी विषय का बीकानेरनिवासी उपाध्याय श्री पण्डित मोहनलाल जी गणी ने बम्बई में हम को प्रदान किया था, वह लेख भी पूर्वोक रास से प्रायः मिलता हुभा ही है, इस लेख के प्राप्त होने से हम को उक विषय की और भी दुखता हो गई, अतः हम • उक्त महोदय को इस कृपा का अन्त.करण से धन्यवाद देते है ॥
२-यह जांगलू के सांखलों की पुत्री थी।