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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ ६०३ जव खैचतान वन्द होने को होती है उस समय जृम्मा (जमाइयाँ वा उवासियों) अथवा डकारें आती है, इस समय भी रोगी रोता है, हँसता है अथवा पागलपन को प्रकट (जाहिर) करता है तथा वारंवार पेशाब करने के लिये जाता है और पेशाव उतरती भी बहुत है। कागज में आ गया इस से यह ठीक निश्चय होता है कि वह विद्या में पूरा उस्ताद था और जब उस की उखादी का निश्चय हो गया तो उस के कथनानुसार कागज में भूतनी के चेहरे का भी विश्वास करना ही पड़ता है। (उत्तर) उस ने जो तुम को कागज़ में साक्षात् चेहरा दिखला दिया वह उस का विद्या का बल नहीं किन्तु केवल उस की चालाकी थी, तुम उस चालाकी को जो विद्या का वल समझते हो यह तुम्हारी विलकुल अज्ञानता तथा पदार्थविद्यानभिज्ञता (पदार्थविद्या को न जानना) है, देखो ! विना लिखे कागज में चित्र का दिखला देना यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि पदार्थविद्या के द्वारा अनेक प्रकार के अद्भुत (विचित्र) कार्य दिखलाये जा सकते हैं, उन के यथार्थ तत्त्व को न समझ कर भूत प्रेत आदि का निश्चय कर लेना अत्यन्त मूर्खता है, इन के सिवाय इस वात का जान लेना भी आवश्यक (जरूरी) है कि उन्माद आदि कई रोगों का विशेष सम्बध मन के साथ है, इस लिये कमी २ वे महीने दो महीने तक नहीं भी होते है तथा कभी २ जव मन और तरफ को झुक जाता है अथवा मन की आशा पूर्ण हो जाती है तव विलकुल ही देखने में नहीं आते हैं। उन्माद रोग मे रोना बकना आदि लक्षण मन के सम्बव से होते हैं परन्तु मूर्ख जन उन्हें देख कर भूत और भूतनी को समझ लेते हैं, यह भ्रम वर्तमान में प्राय. देखा जाता है, इस का हेतु केवल कुसं. स्कार (बुरा सस्कार) ही है, देखो। जब कोई छोटा वालक रोता है तब उस की माता कहती है कि-"होमा आया" इस को सुन कर बालक चुप हो जाता है, वस उस वालक के हृदय में उसी होए का सस्कार जम जाता है और वह आजन्म (जन्मभर) नहीं निकलता है, प्रिय वाचकवृन्द ! विचारो तो सही कि वह हौभा क्या चीज है, कुछ भी नहीं, परन्तु उस अभावरूप हौए का भी बुरा असर बालक के कोमल हृदय पर कैसा पड़ता है कि वह जन्मभर नहीं जाता है, देसो! हमारे देशी भाइयो में से बहुत से लोग रात्रि के समय मे दूसरे प्राम में वा किसी दूसरी जगह अकेले बाने में उरते हैं, इस का क्या कारण है, केवल यही कारण है कि-अज्ञान माता ने बालकपन में उन के हृदय में होआ का भय और उस का बुरा सस्कार स्थापित कर दिया है। यह कुसस्कार विद्या से रहित मारवाड आदि अनेक देशों में तो अधिक देखा ही जाता है परन्तु गुजरात आदि जो कि पठित देश कहलाते हैं वे भी इस के भी दो पैर आगे बढे हुए हैं, इस का कारण स्त्रीवर्ग की अज्ञानता के सिवाय और कुछ नहीं है। यद्यपि इस विषय में यहा पर हम को अनेक अद्भुत बातें भी लिखनी थीं कि जिन से गृहस्थों और भोले लोगो का सव श्रम दूर हो जाता तया पदार्थविज्ञानसम्बधी कुछ चमत्कार भी उन्हें विदित हो जाते परन्तु अन्य के अधिक बढ जाने के भय से उन सब बातों को यहा नहीं लिख सकते है, किन्तु सूचना मात्र प्रसगवशात् यहा पर वतला देना आवश्यक (ज़रुरी) था, इस लिये कुछ पतला दिया गया, उन सब अद्भुत बातों का वर्णन अन्यत्र प्रसगानुसार किया जाकर पाठकों की सेवा में उपस्थित किया जावेगा, आशा है कि समझदार पुरुष हमारे इतने ही लेख से तत्त्व का विचार कर मिथ्या भ्रम (महे वहम) को दूर कर धूर्त और पाखण्डी लोगों के पंजे में न फंस कर लाभ उठावेंगे।
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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