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________________ ६०२ जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ कमी २ खैंचतान थोड़ी और कमी २ अधिक होती है, रोगी अपने हाथ पैरों को फेंकता है तथा पछाड़े मारता है, रोगी के दाँत बँध जाते हैं परन्तु प्रायः जीभ नहीं क ड़ती है और न मुख से फेन गिरता है, रोगी का दम घुटता है, वह अपने बालों को तोड़ता है, कपड़ों को फाड़ता है तथा लड़ना प्रारम्भ करता है । 1 ऊपर कहे हुए दोनों को झूठा समझना चाहिये । ( प्रश्न ) महाशय ! हम ने आप की बतलाई हुई परीक्षा को तो कमी नहीं किया, क्योंकि यह बात आजतक हम को मालूम ही नहीं थी, परन्तु हम ने भूतनी को निकालते तो अपनी आँखो से (प्रत्यक्ष ) देखा है, वह आप से कहता हूँ, सुनिये मेरी स्त्री के शरीर मे महीने में दो तीन बार भूतनी आया करती थी, मैं ने बहुत से झाड़ा झपाटा करने वालो से भाडे झपाटे आदि करवाये तथा उन के कहने के अनुसार बहुत सा द्रव्य भी खर्च किया, परन्तु कुछ भी लाभ नही हुआ, आखिरकार झाडा देनेवाला एक उस्ताद मिला, उस ने मुझ से कहा कि- "मैं तुम को आँखों से भूतिनी को दिखला दूँगा तथा उसे निकाल दूंगा परन्तु तुम से एक सौ एक रुपये लुगा” मैं ने उस की चात को स्वीकार कर लिया, पीछे भगलवार के दिन शाम को वह मेरे पास आया और मुझ से फुलस्केप कागज़ का आधा शीट ( तहता ) मंगवाया और उस ( कागज़ ) को मन्त्र कर मेरी स्त्री के हाथ में उसे दिया और लोवान की धूप देता रहा, पीछे मन्त्र पढ कर सात ककडीं उस ने मारी और मेरी स्त्री से कहा कि- "देखो ! इस में तुम्हें कुछ दीखता है" मेरी स्त्री ने लब्बा के कारण जब कुछ नहीं कहा तव से ने उस कागज़ को देखा तो उस मे साक्षात् भूतनी का चेहरा मुझ को दीख पडा, तव मुझ को विश्वास हो गया और भूतनी निकल गई, पीछे उस के कहने के अनुसार मैं ने उसे एक सौ एक रुपये दे दिये, जाते समय उस ने एक यन्त्र भी बना कर मेरी स्त्री के वैधवा दिया और वह चला गया, उस के चले जाने के बाद एक महीने तक मेरी स्त्री अच्छी रही परन्तु फिर पूर्ववत् (पहिले के समान ) हो गई, यह मैं ने अपनी आँखों से देखा है, अब यदि कोई इस को झूठ कहे तो भला मैं कैसे मानूँ ? ( उत्तर ) तुम जो आँखों से देखा है उस को झूठ कौन कह सकता है, परन्तु तुम को मालूम नहीं है कि- उगनेवाले लोग ऐसी २ चालाकिया किया करते है जो कि साधारण लोगों की समझ में कभी नहीं आ सकती हैं और उन की वैसी ही चालाकियों से तुम्हारे जैसे भोले लोग ठगे जाते हैं, देखो ! तुम लोगों से यदि कोई विद्योन्नति ( विद्या की वृद्धि ) आदि उत्तम काम के लिये पांच रुपये भी मांगे तो तुम कभी नही दे सकते हो, परन्तु उन धूर्त पाखण्डियों को खुशी के साथ सैकडो रुपये दे देते हो, बस इसी का नाम अविद्या का प्रसाद (भज्ञान की कृपा ) है, तुम कहते हो कि उस झाडा देनेवाले उस्ताद ने हम को कागज में भूतनी का चेहरा साक्षात् दिखला दिया, सो प्रथम तो हम तुम से यही पूँछते है कि तुम ने उस कागज मे लिखे हुए चेहरे को देखकर यह कैसे निश्चय कर लिया कि यह भूतनी का चेहरा है, क्योंकि तुम ने पहिले तो कभी भूतनी को देखा ही नहीं था, (यह नियम की बात है कि पहिले साक्षात् देखे हुए मूर्तिमान् पदार्थ के चित्र को देखकर भी वह पदार्थं जाना जाता है ) बस बिना भूतिनी को देखे कागज में लिखे हुए चित्र को देख कर भूविनी के चेहरे का निrय कर लेना तुम्हारी अज्ञानता नहीं तो और क्या है ? (प्रश्न ) हम ने माना कि-- कागज मे भूतनी का चेहरा भले ही न हो परन्तु बिना लिखे वह चेहरा उस कागज़ में आ गया, यह उस की पूरी उस्तादी नही तो और क्या है ! जब कि विना लिखे उस की विद्या के बल से वह चेहरा
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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