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________________ ३४ जैनसम्प्रदायशिक्षा । , निर्गुणि शत से हूँ अधिक, एक पुत्र गुणवान ॥ - एक चन्द्र तम को हरै, तारा नहि शतमान ॥ ४० ॥ निर्गुणी लड़के यदि सौ भी हों तथापि वे किसी काम के नहीं है, किन्तु गुणवान् पुत्र यदि एक भी हो तो अच्छा है, जैसे-देखो ! एक चन्द्रमा उदित होकर अन्धकार को दूर कर देता है, किन्तु सैकड़ों तारों के होने पर भी अंधेरा नहीं मिटता है, तात्पर्य यह है कि-~गुणी पुत्र को चन्द्रमा के समान कुल में उद्योत करनेवाला जानो और निर्गुणी पुत्रों को तारों के समान समझो अर्थात् सौ भी निर्गुणी पुत्र अपने कुल में उद्योत नहीं कर सकते हैं।। सुख चाहो विद्या तजो, विद्यार्थी सुख त्याग॥ सुख चाहे विद्या कहाँ, कह विद्या सुख राग ॥४१॥ यदि सुख भोगना चाहे तो विद्या को छोड देना चाहिये और विद्या सीखना चाहे तो सुख को छोड़ देना चाहिये, क्योंकि सुख चाहनेवाले को विद्या नहीं मिलती है ॥ ४१ ।। नहि नीचो पाताल तल, ऊँचो मेरु लिगार ॥ व्यापारी उद्यम करै, गहिरो दधि नहिँ धार ॥४२॥ उद्यमी (मेहनती) पुरुष के लिये मेरु पहाड़ कुछ ऊंचा नहीं है और पाताल भी कुछ नीचा नहीं है तथा समुद्र भी कुछ गहरा नहीं है, तात्पर्य यह है कि-उद्यम से सब काम सिद्ध हो सकते है ॥ ४२ ॥ एकहि अक्षर शिष्य को, जो गुरु देत बताय ॥ धरती पर वह द्रव्य नहि, जिहि दै ऋण उतराय ॥४३॥ गुरु कृपा करके चाहें एक ही अक्षर शिष्य को सिखलावे, तो भी उस के उपकार का बदला उतारने के लिये कोई धन संसार में नहीं है, अर्थात् गुरु के उपकार के बदले में शिण्य किसी भी वस्तु को देकर उऋण नही हो सकता है ॥ १३ ॥ पुस्तक पर आप हि पढ्यो, गुरु समीप नाहि जाय ॥ सभा न शोभै जार सें, ज्यों तिय गर्भ धराय ॥ ४४ ॥ जिस पुरुष ने गुरु के पास जाकर विद्या का अभ्यास नहीं किया, किन्तु अपनी ही बुद्धि से पुस्तक पर आप ही अभ्यास किया है, वह पुरुष सभा में शोमा को नही पा सकता है, जैसेजार पुरुष से उत्पन्न हुआ लड़का शोभा को नहीं पाता है, क्योंकि जार से गर्भ धारण की हुई स्त्री तथा उसका लड़का अपनी जातिवालों की सभा में शोभा नहीं पाते हैं, क्योंकि-लज्जा के कारण बाप का नाम नहीं बतला सकते हैं ॥ १४ ॥ १-तात्पर्य यह है कि-विद्याभ्यास के समय में यदि मनुष्य भोग विलास में लगा रहेगा तो उस को विद्या की प्राप्ति कदापि नहीं होगी, इस लिये विद्यार्थी सुख को और मुखार्थी विद्या को छोड देवे ॥ ..
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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