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________________ ३५८ जनसम्प्रदायशिक्षा ॥ विधवापन की तकलीफ विशेष नहीं हो सकती है, वस इस हिसाब से सौ विवाहिता स्त्रियों में से केवल दो विषवायें ऐसी दीख पड़ेंगी कि जो सन्तानहीन तथा निराश्रयवत् होंगी अर्थात् जिन का कुछ अन्य प्रबन्ध करने की आवश्यकता रहेगी।। इस लिये सब उच्च वर्ण ( ऊंची जाति )वालों को उचित है कि खयंवर की रीति से विवाह करने की प्रथा को अवश्य प्रचलित करें, यदि इस समय किसी कारण से उक्त रीति का प्रचार न हो सके तो आप खुद गुण कर्म और खभाव को मिलाकर उसी प्रकार कार्य को कीजिये कि जिस प्रकार आप के प्राचीन पुरुष करते थे। देखिये ! विवाह होने से मनुष्य गृहस्थ हो जाते है और उन को प्रायः गृहस्थोपयोगी सब ही प्रकार के पदार्थों की आवश्यकता होती है तथा वे सब पदार्थ धन ही से प्राप्त होते है और धन की प्राप्ति विद्या आदि उत्तम गुणों से ही होती है तथा विद्या आदि उत्तम गुणों के प्राप्त करने का समय केवल बाल्यावस्था ही है, अतः यदि बाल्यावस्था में विवाह कर सन्तान को बन्धन में डाल दिया जावे तो कहिये विद्या आदि उत्तम गुणों की प्राप्ति कब और कैसे हो सकती है तथा विद्या आदि उत्तम गुणों के अभाव में घन की प्राप्ति कैसे हो सकती है और उस के बिना आवश्यक गृहस्थोपयोगी पदार्थों की अनुपलब्धि (अप्राप्ति) से गृहस्थाश्रम में पूर्ण सुख कैसे प्राप्त हो सकता है ? सत्य तो यह है कि बाल्यावस्था में विवाह का कर देना मानो सब आश्रमों को और उन के सुखों को नष्ट कर देता है, इसी कारण से तो प्राचीन काल में विद्याध्ययन के पश्चात् विवाह होता था, शास्त्रकारों ने भी यही आज्ञा दी है कि-प्रथम अच्छे प्रकार से विद्याध्ययन कर फिर विवाह कर के गृह में वास करें, क्योंकि विद्या, जितेन्द्रियता और पुरुपार्थ के प्राप्त हुए विना गृहस्थाश्रम का पालन नहीं किया जा सकता है और जिस ने इन (विद्या आदि) को प्राप्त नहीं किया वह पुरुष धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को भी नहीं सिद्ध कर सकता है । -माता पिता को उचित है कि जब अपने पुत्र और पुत्री युवावस्था को प्राप्त हो जावें तव उन के योग्य कन्या मौर वर के ब्रह्मचर्य की, विद्या आदि सद्गुणों की तथा उन के धर्माचरण की अच्छे प्रकार से परीक्षा करके ही उन का विवाह करें, इस की विधि शास्त्रकारों ने इस प्रकार कही है कि-1-लडके की अवस्था २५ वर्ष की तथा लड़की की अवस्था सोलह वर्ष की होनी चाहिये। २-उचाई में लड़की लड़के के कन्धे के बराबर होनी चाहिये, अथवा इस से भी कुछ कम होनी चाहिये अर्थात् लडके से लड़की उँची नहीं होनी चाहिये। ३-दोनों के शरीर सम होने चाहिये । ४-दोनों या तो विद्वान् होने चाहिये अथवा दोनों ही मूर्ख होने चाहिये। पत्रीके गुण-१-जिस कै शरीर में कोई रोग न हो। २-जिस के शरीर में दुर्गन्ध न आती हो। ३-जिस के शरीरपर बड़े २ बाढ़ न हो तथा मूंछ के बाल भी न हों। ४-जो बहुत धकवाद करनेवाली न हो । ५-जिस का शरीर टेढा हो वथा अगहीन भी न हो। ६-जिस का शरीर कोमल हो परन्तु दृढ़ हो । -जिस की वाणी मधुर हो -जिस का वर्ण पीला न हो। ओ भूरे नेत्रवानी न हो। १०-जिस
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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