SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५६ जैनसम्प्रदायशिक्षा || प्रकार का आनन्द ही आता है, जिस प्रकार भूख के समय में सुखी रोटी भी अच्छी जान पड़ती है परन्तु भूख के विना मोहनभोग को खाने को भी जी नही चाहता है, इसी प्रकार योग्य अवस्था के होनेपर तथा स्त्री पुरुष को विवाह की इच्छा होनेपर दोनों को आनन्द प्राप्त होता है किन्तु छोटे २ पुत्र और पुत्रियों का उस दशा में जब कि उन को न तो कामानि ही सताती है और न उन का मन ही उधर को जाता है, विवाह कर देने से क्या लाभ हो सकता है ? कुछ भी नहीं, किन्तु यह विवाह तो बिना भूख के खाये हुए भोजन के समान अनेक हानियां ही करता है । हे सुजनो ! इन ऊपर कही हुई हानियों के सिवाय एक बहुत बड़ी हानि वह होती है कि जिस के कारण इस भारत में चारों ओर हाहाकार मच रहा है तथा जिससे उसके निर्मल यश में धव्वा लग रहा है, वह बुरी वाल विधवाओं का समूह है कि जिन की आहें इस भारत के घाव पर और भी नमक डाल रही हैं, हा प्रभो ! वह कौन सा ऐसा घर है जिस में विधवाओं के दर्शन नहीं होते हैं, उसपर भी वे भोली विधवायें कैसी है कि जिन के दूध के दाँततक नहीं गिरे है, न उन को अपने विवाह की कुछ सुध बुध है और न वे यह जानती है कि हमारी चूड़ियां क्योंकर फूटी है, हमारे ऊपर पैदा होते ही कौन सा वज्रपात हो गया है, इसपर भी तुर्रा यह है कि जब वे बेचारी तरुण होती हैं तब कामानल ( कामानि ) के प्रबल होनेपर उन का नियोग भी नहीं होता है | भला सोचिये तो सही कि कामानल के दुःसह तेज का सहन कैसे हो सकता है ? सिर्फ यही कारण है कि हज़ारों में से दश पांच ही सुन्दर आचरणवाली होती है, नहीं तो प्रायः नाना लीलायें रचती हैं कि जिन से निष्कलंक कुलवालों के भी शिर से " लज्जा की पगड़ी गिर जाती है, क्या उस समय कुलीन पुरुषों की मूछें उन के मुँहपर शोभा देती है ? नहीं कभी नहीं, उन के यौवन का मद एकदम उतर जाता है, उन की प्रतिष्ठापर भी इस प्रकार छार पड़ जाती है कि- दश आदमियों में ऊँचा मुँह कर के उन की चोलने की भी ताकत नहीं रहती है, सत्य तो यह है कि -मातापिता इस जलती हुई चिताको अपनी छाती पर देख २ कर हाड़ों का सांचा बन जाते है, इन सब क्लेशों का कारण बाल्यावस्था का विवाह ही है, देखो ! भारत में विधवाओं की संख्या वर्त्तमान में इतनी है कि जितनी अन्य किसी देश में नही पाई जाती, क्योंकि अन्यत्र बाल्यावस्था में विवाह नहीं होता है, देखो ! पूर्वकाल में जब इस भारत में बाल्यावस्था में विवाह नहीं होता था तब यहां विधवाओं की गणना ( संख्या ) बहुत ही न्यून थी । बाल्यावस्था के विवाह से हानि का प्रत्यक्ष प्रमाण और दृष्टान्त यही है कि देखो ! जब किसी खेत में गेहूँ आदि अन्न को वोते हैं तो जमने के पीछे दश पांच दिन में बहुत से मर जाते है, एक महीने के पीछे बहुत कम मरते हैं, दो चार महीने के पीछे
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy