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________________ ३०२ जैनसम्प्रदायशिक्षा || अवश्य स्वयं व्यायाम करना चाहिये तथा अपने सन्तानों को भी प्रतिदिन व्यायाम का अभ्यास कराना चाहिये जिस से इस भारत में पूर्ववत् वीरशक्ति पुनः आ जावे | शरीर का बल भी देखना उचित है क्योंकि व्यायाम करने में सदा देश काल और इस से विपरीत दशामें रोग हो जाते हैं । कसरत करने के पीछे तुरंत पानी नहीं कुछ बलदायक भोजन का करना आवश्यक है की कतली आदि, अथवा अन्य किसी प्रकार के पुष्टिकारक लड्डू आदि जो कि देश काल और प्रकृति के अनुकूल हों खाने चाहियें || व्यायाम का निषेध - मिश्रित वातपित्त रोगी, बालक, वृद्ध और अजीर्णी मनुप्यों को कसरत नही करनी चाहिये, शीतकाल और वसन्तऋतु में अच्छे प्रकार से तथा अन्य ऋतुओं में थोड़ा व्यायाम करना योग्य है, अति व्यायाम भी नहीं करना चाहिये क्योंकि अत्यन्त व्यायाम के करने से तृषा, क्षय, तमक, श्वास, रक्तपित्त, श्रम, ग्लानि, कास, ज्वर और छर्दि आदि रोग हो जाते हैं ॥ तैलमर्दन ॥ तेल का मर्दन करना भी एक प्रकार की कसरत है तथा लाभदायक भी है इसलिये प्रतिदिन प्रातःकाल में स्वान करने से पहिले तेल की मालिश करानी चाहिये, यदि कसरत करने वाला पुरुष कसरत करने के एक घंटे पीछे शरीर में तेल का मर्दन कर वाया करे तो इस के गुणों का पार नहीं है, तेल के मर्दन के समय में इस बात का भी स्मरण रहना चाहिये कि - तेल की मालिश सब से अधिक पैरों में करानी चाहिये, क्योंकि पैरों में तेल की अच्छी तरह से मालिश कराने से शरीर में अधिक बल आता है, तेल के मर्दन के गुण इस प्रकार हैं: १ - तेल की मालिश नीरोगता और दीर्घायु की करने वाली तथा ताकत को बढाने वाली है । २ - इस से चमड़ी सुहावनी हो जाती है तथा चमड़ी का रूखापन और खसरा जाता रहता है तथा अन्य भी चमड़ी के नाना प्रकार के रोग जाते रहते हैं और चमड़ी में नया रोग पैदा नहीं होने पाता है । पीना चाहिये, किन्तु एक दो घण्टे के पीछे जैसे- मिश्रीसंयुक्त गायका दूध वा बादाम ३ - शरीर के साधे नरम और मज़बूत हो जाते हैं । ४- रस और खून के बंद हुए मार्ग खुल जाते है । ५ - जमा हुआ खून गतिमान होकर शरीर में फिरने लगता है । ६ - खून में मिली हुई वायु के दूर हो जाने से बहुत से आनेवाले रोग रुक जाते है । १—–थोड़े दिनों तक निरन्तर तेल की मालिश कराने से उस का फायदा आप ही मालूम होने लगता है ॥
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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