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________________ २६४ जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ पदार्थों का सेवन किया जावे तो सन्निपात तथा मरणतक हानि पहुँचती है, रोग समय में निषिद्ध पदार्थों का सेवन कर के भी बच जाना तो अनि विष और शस्त्र से बच जाने के तुल्य दैवाधीन ही समझना चाहिये। वैद्यक शास्त्र में निषेध होने पर भी नये ज्वर में जो पश्चिमीय विद्वान् (डाक्टर लोग) दूध पिलाते है इस बात का निश्चय अद्यावधि (आजतक) ठीक तौर से नहीं हुआ है, हमारी समझ में वह (दूध का पिलाना) औषध विशेष का (जिस का वे लोग प्रयोग करते है) अनुपान समझना चाहिये, परन्तु यह एक विचारणीय विषय है। इसी प्रकार से कफ के रोगी को तथा प्रसूता स्त्री को मिश्री आदि पदार्थ हानि पहुँचाते है ॥ पथ्यापथ्य पदार्थ ॥ बाजरी, उड़द, चंवला, कुलथी, गुड़, खांड, मक्खन, दही, छाछ, भैस का दूध, घी, आल., तोरई, काँदा, करेला, कँकोड़ा, गुवार फली, दूधी, लवा, कोला, मेथी, मोगरी, मूला, गाजर, काचर, ककड़ी, गोभी, घिया, तोरई, केला, अनन्नास, आम, जामुन, करौंदे, अल्लीर, नारंगी, नींबू, अमरूद, सकरकन्द, पील, गूदा और तरबूज आदि बहुत से पदार्थों का लोग प्रायः उपयोग करते है परन्तु प्रकृति और ऋतु आदि का विचार कर इन का सेवन करना चाहिये, क्योंकि ये पदार्थ किसी प्रकृति वाले के लिये अनुकूल तथा किसी प्रकृतिवाले के लिये प्रतिकूल एवं किसी ऋतु में अनुकूल और किसी ऋतु में प्रतिकूल होते है, इसलिये प्रकृति आदि का विचार किये विना इन का उपयोग करने से हानि होती है, जैसे दही शरद् ऋतु में शत्रु का काम करता है, वर्षा और हेमन्त ऋतु में हितकर है, गर्मी में अर्थात् जेठ वैशाख के महीने में मिश्री के साथ खाने से ही फायदा करता है, एवं ज्वर वाले को कुपथ्य है और अतीसार वाले को पथ्य है, इस प्रकार प्रत्येक वस्तु के खभाव को तथा ऋतु के अनुसार पथ्यापथ्य को समझ कर और समझदार पूर्ण बैद्य की या इसी अन्य की सम्मति लेकर प्रत्येक वस्तु का सेवन करने से कभी हानि नहीं हो सकती है। पथ्यापथ्य के विषय में इस चौपाई को सदा ध्यान में रखना चाहिये-- चैते गुड़ वैशाखे तेल । जेठे पन्थ अषाढे बेल ॥ सावन दूध न भादौं मही। कार करेला न कातिक दही ॥ अगहन जीरो पूसे धना। माहे मिश्री फागुन चना ।। जो यह बारह देय बचाय । ता घर वैध कब हुँ न जाये ॥१॥ १-इस का अर्थ स्पष्ट ही है इस लिये नहीं लिखा है ।
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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