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________________ चतुर्थ अध्याय॥ २४३ जिन औषधों के साथ तेल पकाया जावे उन औषधों का उपयोग इस प्रकार करना चाहिये कि गर्मी अर्थात् पित्त की प्रकृतिवाले के लिये ठंढी और खून को साफ करनेवाली औषधों का तथा कफ और वायु की प्रकृतिवाले के लिये उष्ण और कफ को काटनेवाली औषधों का उपयोग करना चाहिये, नारायण, लक्ष्मीविलास, पइविन्द, चन्दनादि, लाशादि, शतपक और सहस्रपक्क आदि अनेक प्रकार के तैल इसी तिल के तेल से बनाये जाते है जो प्रायः अनेक रोगों को नष्ट करते है, तथा बहुत ही गुणकारक होते है । ___ यह तैल पिचकारी लगाने के और पीने के काम में भी आता है तथा गरीब लोग इस को खाने तलने और बधारने आदि अनेक कार्यों में वर्तते है, यह कान तथा नाक में भी डाला जाता है। परन्तु इस में ये अवगुण हैं कि-यह सन्धियों को ढीला कर धातुओं को नर्म कर डालता है, रक्तपित्त रोग को उत्पन्न करता है किन्तु शरीर में मर्दन करने से फायदा करता है, इस के सिवाय शरीर, वाल, चमड़ी तथा आंखों के लिये भी फायदेमन्द है, परन्तु तिली का या सरसों का खाली तेल खाने से इन चारों को (शरीर आदि को) हानि पहुँचाता है, हेमन्त और शिशिर ऋतु में वायु की प्रकृति वाले को यह सदा पथ्य है। सरसों का तेल-दीपन तथा पाक में कटु है, इस का रस हलका है, लेखन, स्पर्श और वीर्य में उष्ण, तीक्ष्ण, पित्त और रुधिर को दूषित करनेवाला, कफ, मेदा, वादी, बवासीर, शिरःपीड़ा, कान के रोग, खुजली, कोढ, कृमि, श्वेत कुष्ठ और दुष्ट कृमि को नष्ट करता है ॥ राई का तेल-काली और लाल राई के तेल में भी सरसों के तेल के समान ही गुण है किन्तु इस में केवल इतनी विशेषता है कि यह मूत्रकृच्छ्र को उत्पन्न करता है ।। "तुवरी का तेल-तुवरी अर्थात् तोरई के बीजों का तेल-तीक्ष्ण, उष्ण, हलका, पाही, कफ और रुधिर का नाशक तथा अग्निकता है, एवं विप, खुजली, कोद, चकते और कृमि को नष्ट करता है, मेददोष और व्रण की सूजन में भी फायदेमन्द है ॥ अलंसी का तेल-अग्निकर्ता, स्निग्ध, उष्ण, कफपित्तकारक, कटुपाकी, नेत्रों को अहित, बलका, वायुहा, मारी, मलकारक, रस में खादिष्ठ, ग्राही, त्वचा के दोषों का नाशक तथा गाढा है, इसे वस्तिकर्म, तैलपान, मालिस, नस्य, कर्णपूरण और अनुपान विधि में वायु की शान्ति के लिये देना चाहिये। कुसुम्भ का तेल-कसूम के बीजों का तेल-खट्टा, उप्ण, भारी, दाहकारक, नेत्रों को अहित, वलकारी, रक्तपित्तकारक तथा कफकारी है।
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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