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जैनसम्प्रदायशिक्षा ||
यद्यपि देश, काल, स्वभाव, श्रम, शरीर की रचना और अवस्था आदि के अनेक भेदों से खुराक के भी अनेक भेद हो सकते हैं तथापि इन सब का वर्णन करने में ग्रन्थविस्तार का भय विचार कर उनका वर्णन नहीं करते हैं किन्तु मुख्यतया यही समझना चाहिये कि खुराक का भेद केवल एक ही है अर्थात् जिस से भूख और प्यास की निवृत्ति हो उसे खुराक कहते हैं, उस खुराक की उत्पत्ति के मुख्य दो हेतु हैं -स्थावर और जगम, स्थावरों में तमाम वनस्पति और जङ्गम में प्राणिजन्य दूध, दही, मक्खन और छाछ (मट्ठा) आदि खुराक जान लेनी चाहिये ।
जैनसूत्रों में उस आहार वा खुराक के चार भेद लिखे हैं-अशन, पान, खादिम और स्वादिम, इनमें से खाने के पदार्थ अशन, पीने के पदार्थ पान, 'चाव कर खाने के पदार्थ खादिम और चाट कर खाने के पदार्थ खादिम कहलाते है - 1
यद्यपि आहार के बहुत से प्रकार अर्थात् भेद हैं तथापि गुणों के अनुसार उक्त आहार के मुख्य आठ भेद हैं--भारी, चिकना, ठंढा, कोमल, हलका, रूक्ष ( रूखा ), गर्म और तीक्ष्ण (तेज़), इन में से पहिले चार गुणोंवाला आहार शीतवीर्य है और पिछले चार गुणोंवाला आहार उष्णवीर्य है ॥
आहार में स्थित जो रस है उसके छः भेद है-मधुर ( मीठा ), अम्ल ( खट्टा ), लवण ( खारा ), कटु ( तीखा ), तिक्त ( कडुआ ) और कषाय ( कषैला ), इन छः रसों के प्रभाबसे आहार के ३ भेद हैं- पथ्य, अपथ्य और पथ्यापथ्य, इन में से हितकारक आहार को पथ्य, अहितकारक ( हानिकारक ) को अपथ्य और हित तथा अहित ( दोनों ) के करने वाले आहार को पथ्यापथ्य कहते हैं, इन तीनों प्रकारों के आहार का वर्णन विस्तार पूर्वक आगे किया जावेगा ।
इस प्रकार भाहार के पदार्थों के अनेक सूक्ष्म भेद हैं परन्तु सर्व साधारण के लिये वे विशेष उपयोगी नहीं हैं, इस लिये सूक्ष्म भेदों का विवेचन कर उनका वर्णन करना अनावश्यक है, हां वेशक छः रस और पथ्यापथ्य पदार्थ सम्बंधी आवश्यक विषयका जान लेना सर्व साधारण के लिये हितकारक है, क्योंकि जिस खुराक को हम सब खाते पीते हैं उसके जुदे २ पदार्थों में जुदा २ रस होने से कौन २ सा रस क्या २ गुण रखता है, क्या २ क्रिया करता है और मात्रा से अधिक खाने से किस २ विकार को उत्पन्न करता है और हमारी खुराक के पदार्थों में कौन २ से पदार्थ पथ्य है तथा कौन २ से अपध्य हैं, इन सब बातों का जानना सर्व साधारण को आवश्यक है, इसलिये इनके विषय में विस्तारपूर्वक वर्णन किया जाता है :
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१ - देखो । पथ्यापथ्य वर्णननामक छठा प्रकरण ॥