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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ १७९ प्रबल प्रवाह से फाड़ कर वहनेवाले नालो का, आषाढ़ में कुंए का श्रावण में अन्तरिक्ष का, भाद्रपद में कुँएका, आश्विन में पहाड़ के कुण्डों का और कार्तिक तथा मार्गशीर्ष (मिरिसर) में सव जलाशयों का पानी पीने के योग्य होता है । खराब पानी से होनेवाले उपद्रव ॥' खराब पानी से अनेक प्रकार के उपद्रव होते हैं. जिन का परिगणन करना कठिन ही नही किन्तु असंभव है, इस लिये उन में से कुछ मुख्य २ उपद्रवों का विवेचन करते हैइस बात को बहुत से लोग जानते हैं कि कई एक रोग ऐसे है जो कि जन्तुओं से उत्पन्न होते है और जन्तुओं को उत्पन्न करनेवाला केवल खराब पानी ही है। पृथिवी के योगसे पानी में खार मिलने से वह (पानी) मीठा और पाचनशक्तिका वर्धक (बढानेवाला) होता है, परन्तु यदि पानी में क्षार का परिमाण मात्रा से अधिक बढ़ जाता है तो वही पानी कई एक रोगों का उत्पादक हो जाता है, जब पानी में सड़ी हुई वनस्पति और मरे हुए जानवरों के दुर्गन्धवाले परमाणु मिल जाते है तो खच्छ जल भी बिगड़ कर अनेक खराबियों को करता है, उस बिगड़े हुए पानी से होनेवाले मुख्य २ ये उपद्रव हैं:१-ज्वर-ठंढ देकर आनेवाले ज्वर का, विषमज्वर का तथा मलेरिया नाम की हवा से उत्पन्न होनेवाले ज्वर का मुख्य कारण खराब पानी ही है, क्योंकि देखो ! विकृत पानी की आर्द्रता से पहिले हवा बिगड़ती है और हवा के विगड़ने से मनुष्य की पाचनशक्ति मन्द पड़ कर ज्वर आने लगता है, ठंढ देकर आनेवाला ज्वर प्रायः आश्विन तथा कार्तिक मास में हुआ करता है, उस का कारण ठीक तौर से मलेरिया हवा ही मानी गई है, क्योंकि उस समय में खेतों के अन्दर काकड़ी और मतीरे आदि की वेलों के पत्ते अध जले हो जाते हैं और जब उन पर पानी गिरता है तब वे (पत्ते) सड़ने लगते हैं, उन के सड़ने से मलेरिया हवा उत्पन्न होकर उस देश में सर्वत्र ज्वर को फैला देती है, तथा यह ज्वर किसी २ को तो ऐसा दवाता है कि दो तीन महीनों तक पीछा नहीं छोड़ता है, परन्तु इस बात को पूरे तौर पर हमारे देश वासी विरले ही जानते है॥ २-दस्त वा मरोड़ा, इस बात का ठीक निश्चय हो चुका है कि दस्तों तथा मरोड़े का रोग भी खरावपानी से ही उत्पन्न होता है, क्योंकि देखो । यह रोग चौमासे में विशेष होता है और चौमासे में नदी आदि के पानी में बरसात से वहकर आये हुए . १-यह मलेरिया से उत्पन्न होनेवाला ज्वर उक्त मासो मे मारधाड़ देशम तो प्राप. अवश्य ही होता है।
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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