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________________ 42 • चतुर्थ अध्याय ॥ हुई है, किन्तु विशेष जनसमूह इस बात को बिलकुल नहीं समझता है कि-खराव पानी से यह रोगोत्पत्ति हुई है, इसलिये वे उस रोग की निवृत्ति के लिये मूर्ख वैद्यों से उपाय कराते २ लाचार होकर बैठ रहते हैं, इसी लिये वे असली कारण को न विचार कर दूसरे उपाय करते २ थक कर जन्म भर तक अनेक.दुःखों को भोगते है ॥ .: पानी के मेदे॥ - पानी का खारा, मीठा, नमकीन, हलका, भारी, मैला, साफ, गन्धयुक्त और गन्धरहित होना आदि पृथिवी की तासीर पर निर्भर है तथा आसपास के पदार्थों पर भी इस का कुछ आधार है, इस से यह बात सिद्ध होती है कि-आकाश के बादलों में से जो पानी बरसता है वह सर्वोत्तम और पीने के लायक है किन्तु पृथिवी पर गिरने के पीछे उस में अनेक प्रकार के पदार्थों का मिश्रण (मिलाव) होनेसे वह विगड़नाता है, यद्यपि पृथिवीपर का और आकाश का पानी एक ही है तथापि उस में भिन्न २ पदार्थों के मिल जाने से उसके गुण में अन्तर पड़ जाता है, देखो! प्रतिवर्ष वृष्टि का बहुतसा पानी पृथ्वीपर गिरता है तथा पृथिवी पर गिरा हुआ वह पानी बहुत सी नदियों के द्वारा समुद्रोंमें जाताहै और ऐसा होनेपर भी वे समुद्र न तो भरते है और न छलकते ही हैं, इस का कारण सिर्फ यही है कि जैसे पृथिवीपर का पानी समुद्रों में जाता है उसी प्रकार समुद्रों का पानी भी सूक्ष्म परमाणु रूप अर्थात् माफ रूप में हो कर फिर आकाश में जाता है और वही भाफ बदल बन कर पुनः जल बर्फ अथवा ओले और धुंभर के रूप में हो जाती है, तालाव कुओं और नदियों का पानी भी भाफ रूपमें होकर ऊँचा चढ़ता है किन्तु खास कर उप्ण ऋतु में पानी में से वह माफ अधिक वन कर बहुत ही ऊँची चढ़ती है, इसलिये उक्त ऋतु में जलाशयों में पानी बहुत ही कम हो जाता है अथवा विलकुल ही सूख जाता है। ___ जब वेष्टि होती है तब उस (वृष्टि) का बहुत सा पानी नदियों तथा तालावों में जाता है और बहुत सा पानी पृथिवी पर ही ठहर कर आस पास की पृथिवी को गीली कर देता है, केवल इतना ही नहीं किन्तु उस पृथिवी के समीपमें स्थित कुएँ और झरने मादि भी उस पानी से पोषण पाते हैं। जहां ठंढ अधिक पड़ती है वहां वर्सात का पहिला पानी बर्फ रूप में नम जाता है तथा १-क्योंकि उन मूर्ख वैद्यों को भी यह बात नहीं मालूम होती है कि पानी की खराबी से यह रोगोत्पत्ति हुई है। २-वृष्टि किस २ प्रकार से होती है इस का वर्णन श्रीभगवती सूत्रमें किया है, वहा यह भी निरूपण है कि-जल की उत्पत्ति, स्थिति और नाश का जो प्रकार है वही प्रकार सब जड़ और चेतन पदार्थों का जान लेना चाहिये, क्योंकि द्रव्य नित्य है तथा गुण भी नित्य है परन्तु पर्याय अनिल है । २२
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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