________________
चतुर्थ अध्याय ॥
१६५
पूर्व समय के अनभिज्ञ कारीगरों के बनाये हुए मकान हों तो उन को सुधरा कर हवा दार कर लेना चाहिये ।
यद्यपि उत्तम मकानों का बनवाना आदि कार्य द्रव्य पात्रों से निम सकता है, क्योंकि उत्तम मकानों के बनवाने में काफी द्रव्य की आवश्यकता होती है तथापि अपनी हैसियत और योग्यता के अनुसार तो यथाशक्य इस के लिये मनुष्यमात्र को प्रयत्न करना ही चाहिये, यह भी स्मरण रखना चाहिये कि - मलीन कचरे और सड़ती हुई चीजों से उड़ती हुई मलीन हवा से प्राणी एकदम नहीं मरता है परन्तु उसी दशा में यदि बहुत समय तक रहा जावे तो अवश्य मर्रण होगा ।
देखो । यह तो निश्चित ही बात है कि बहुत से आदमी प्रायः रोग से ही मरते हैं, वह रोग क्यों होता है, इस बात का यदि पूरा २ निदान किया जावे तो अवश्य यही ज्ञात होगा कि बहुत से रोगों का मुख्य कारण खराब हवा ही है, जिस प्रकार से अति कठिन विष पेट में जाता है तो प्राणी शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त होता है और अफीम आदि विष धीरे २ सेवन किये हुए भी कालान्तर में हानि पहुँचाते हैं, इसी प्रकार से सदा सेवन की हुई थोड़ी २ खराब हवा का भी विष शरीर में प्रविष्ट होकर बड़ी हानि का कारण बन जाता है ।
यह भी जान लेना चाहिये कि - बीमार आदमी के आस पास की हवा जल्दी बिगड़ती है, इस लिये बीमार आदमी के पास अच्छे प्रकार से साफ हवा आने देना चाहिये, जिस प्रकार से शरीर के बाहर ताज़ी हवा की आवश्यकता है उसी प्रकार शरीर के भीतर भी ताज़ी हवा लेने की सदा आवश्यकता रहती है, जैसे बादली का अथवा कपड़े का टुकड़ा मुलायम हाथ से पकड़ा हुआ हो तो वह बहुत पानी को चूसता है तथा दबा कर पकड़ा हुआ हो तो वह टुकड़ा कम पानी को चूसता है, बस यही हाल भीतरी फेफड़े का है अर्थात् यदि फेफड़ा थोड़ा दवा हुआ हो तो उस में अधिक हवा प्रवेश करती है और उस से खून अच्छी तरह से साफ होता है, इस लिये लिखने पढ़ने और बैठने आदि सब कामों के करते समय फेफड़ा बहुत दव जावे इस प्रकार से टेढ़ा बांका हो कर नहीं बैठना चाहिये, इस बात को अवश्य ध्यान में रखना चाहिये, क्योंकि - फेफड़े पर दवाब पड़ने से उसके भीतर अधिक हवा नहीं जा सकती है और अधिक हवा के न जाने से अनेक बीमारियां हो जाती हैं |
१- देखो । जैनसूत्रो में यह कहा है कि-उपक्रम लग कर प्राणी की आयु टूटती है और उस (उपक्रम) के मुख्यतया सौ भेद हैं, किन्तु निश्चय मृत्यु एक ही है, उस उपक्रम के भी ऐसे २ कारण हैं कि जिन को अपने लोग प्रत्यक्ष नहीं देख सकते और न जान सकते हैं ॥
२ - यह नहीं समझना चाहिये कि अफीम आदि विप करते है किन्तु वे भी समय पाकर कठिन विप के समान
धीरे २ तथा थोडा २ सेवन करने से हानि नहीं असर करते है ।।