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________________ १६४ जैनसम्प्रदायशिक्षा || है तब उस के चलने से बिगड़ी हुई हवा भी छिन्न भिन्न होकर नष्ट हो जाती है अर्थात् सब वायु खच्छ रहती है, उस समय प्राणी मात्र श्वास लेते हैं तो प्राणवायु को ही मीतर लेते है और कार्बोनिक एसिड ग्यस को बाहर निकालते हैं, परन्तु वृक्ष और वनस्पति आदि इस से विपरीत क्रिया करते है अर्थात् वृक्ष और वनस्पति आदि दिन को कार्बन को अपने भीतर चूस लेते है तथा प्राणवायु को बाहर निकालते है, इस से भी वायु के आवरण की हवा शुद्ध रहती है अर्थात् दिन को वृक्षों की हवा साफ होती है और रात को उक्त वनस्पति आदि प्राणवायु को अपने भीतर खीचते है और कार्बोनिक एसिड ग्यस को बाहर निकालते है, परन्तु इस में भी इतना फर्क है कि रात को जितनी प्राणवायु को वनस्पति आदि अपने भीतर खीचते है उस की अपेक्षा दिन में प्राणवायु को अधिक निकालते है, इस लिये रात को वृक्षों के नीचे कदापि नहीं सोना चाहिये, क्योंकि रात को वृक्षों के नीचे सोने से आरोग्यता का नाश होता है । इस प्रकार से ऊपर कही हुई हवा एक दूसरे के साथ मिलने से अर्थात् पवन और वृक्षों से संग होने से साफ होती है, इस के सिवाय वरसात भी हवा को साफ करने में सहायता देती है । इस प्रकार से हवा की शुद्धि के सब कारणों को जानकर सर्वदा शुद्ध हवा का ही सेवन करना चाहिये, क्योंकि-शुद्ध हवा बहुत ही अमूल्य वस्तु है, इसी लिये सद् वैद्यों का यह कथन है कि-“सौ दवा और एक हवा" इस लिये स्वच्छ हवा के मिलने का य सदैव करना चाहिये । वस्ती की हवा दबी हुई होती है, इस लिये - सदा थोड़े समय तक बाहर की खुली हुई खच्छ हवा को खाने के लिये जाना चाहिये, क्योंकि इस से शरीर को बहुत ही लाभ पहुँचता है तथा फिरने से शरीर के सब अवयवों को कसरत भी मिलती है, इसलिये ताजी हवा का खाना कसरत से भी अधिक फायदेमन्द है । यद्यपि दिन में तो चलने फिरने आदि से मनुष्यों को ताजी हवा मिल सकती है परन्तु रात को घर में सोने के समय साफ हवा का मिलना इमारत बनाने वाले चतुर कारीगर और वास्तुशास्त्र को पढे हुए इञ्जीनियरों के हाथ में है, इसलिये अच्छे २ चतुर इञ्जीनियरों की सम्मति से सोने बैठने आदि के सब मकान हवादार बनवाने चाहियें, यदि १- देखो | जैनाचार्य श्री जिनदत्तसूरिकृत विवेकविलासादि ग्रन्थो में रात को वृक्षों के नीचे सोने का अत्यन्त ही निषेध लिखा है तथा इस बात को हमारे देश के निवासी ग्रामीण पुरुष तक जानते है और कहते हैं कि-रात को वृक्ष के नीचे नहीं सोना चाहिये, परन्तु रात को वृक्षो के नीचे क्यों नहीं सोना चाहिये, इस का कारण क्या है, इस बात को बिरले ही जानते हैं ॥ २- अर्थात् शुद्ध हवा सौ दवाओ के तुल्य है ॥
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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