________________
१६०
जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ अपने मुंह में श्वास के मार्ग से लेते है कि जिस से जूठे पानी की अपेक्षा भी इससे अधिक खराबी उत्पन्न हो जाती है, एवं गाय, बैल, बकरे और कुत्ते आदि जानवर मी अपने ही समान श्वास के संग ज़हरीली हवा को बाहर निकालते हैं और शुद्ध हवा को विगाड़ते हैं। २-त्वचा में से छिद्रों के मार्ग से पसीने के रूप में भी परमाणु निकलते हैं वे भी हवा को
विगाड़ते हैं। ३-वस्तुओं के जलाने की क्रिया से भी हवा विगड़ती है, बहुत से लोग इस बात को
सुन के आश्चर्य करेंगे और कहेंगे कि जहां जलता हुआ दीपक रक्खा जाता है अथवा जलाने की क्रिया होती है वहां की हवा तो उलटी शुद्ध हो जाती है वहां की हवा बिगड़ कैसे जाती है क्योंकि-प्राण वायु के विना तो अंगार सुलगेगा ही नहीं इत्यादि, परन्तु यह उन का भ्रम है क्योंकि देखो दीपक को यदि एक सैंकड़े वासन में रक्खा जाता है तो वह दीपक शीघ्र ही बुझ जाता है, क्योंकि उस बासन का सब प्राणवायु नष्ट हो जाता है, इसी प्रकार सँकड़े घर में भी बहुत से दीपक जलाये जावे अथवा अधिक रोशनी की जावे तो वहां का प्राणवायु पूरा होकर कार्बोनिक एसिड ग्यस (जहरीली वायु) की विशेषता हो जाती है तथा उस घर में रहने वाले मनुष्यों की तवीयत को बिगाड़ती है, परन्तु ऐसी बातें कुछ कठिन होने के कारण सामान्य मनुज्योंकी समझ में नहीं आती है और समझ में न आने से वे सामान्य बुद्धि के पुरुष हवा के बिगड़ने के कारण को ठीक रीति से नहीं जाँच सकते हैं और संकीर्ण स्थान में सिगड़ी और कोयले आदि जला कर प्राणवायु को नष्ट कर अनेक रोगों में फंस कर अनेक प्रकार के दुःखों को भोगा करते है । सम्पूर्ण प्रमाणों से सिद्ध हो चुका है कि--सड़ी हुई वस्तु से उड़ती हुई ज़हरीली तथा दुर्गन्ध युक्त हवा भी स्वच्छ हवा को बिगाड़कर बहुत खरावी करती है, देखो ! जब वृक्ष अथवा कोई प्राणी नष्ट हो जाता है तब वह शीघ्र ही सड़ने लगता है तथा उस के सड़ने से बहुत ही हानिकारक हवा उड़ती है और उस के रजःकण पवन के द्वारा दूरतक फैले जाते है, इस पर यदि कोई यह कहे कि सड़ी हुई वस्तु से निकल कर हवा के द्वारा कोसों तक फैलते हुए वे परमाणु दीखते क्यों नहीं हैं ! तो इस का उत्तर यह है कि यदि अपनी आँखें अपनी सूंघने की इन्द्रिय के समान ही तीक्ष्ण होतीं तो सड़ते हुए प्राणी में
१-प्रत्येक मनुष्य के शरीर में से २४ घण्टे में अनुमान से ३० औंस पसीने के परमाणु बाहर निकलते हैं।
२-इसी लिये जैन सूत्र कारों ने जिस घर में मुर्दा पडा हो उस के संलग्न में सौ हाथ तक सूतक माना है, परन्तु यदि बीच में रास्ता पडा हो तो सूतक नहीं मानाहै, क्योंकि-चीच में रास्ता होने से दुर्गन्ध के परमाणु हवा से उड़ कर कोसों दूर चले जाते हैं।