SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ आरोग्यता के नियमों के अनुसार वर्ताव कर न केवल खयं उसका फल पाता है किन्तु अपने कुटुम्ब और समझदार पड़ोसियों को भी आरोग्यता रूप फल दे सकता है। शरीर संरक्षण का ज्ञान और उसके नियमों का पालन करना आदि बातों की शिक्षा किसी बड़े स्कूल वा कॉलेज में ही प्राप्त हो सकती है यह बात नहीं है, किन्तु मनुष्यके लिये घर और कुटुम्ब भी सामान्य ज्ञान की शिक्षा और आनुभविकी ( अनुभव से उत्पन्न होने वाली) विद्या सिखलाने के लिये एक पाठशाला ही है, क्योंकि-अन्य पाठशाला और कॉलेजों में आवश्यक शिक्षा के प्राप्त करने के पश्चात् भी घर की पाठ शाला का आवश्यक अभ्यास करना, समुचित नियमों का सीखना और उन्हीं के अनुसार चर्चाव करना आदि आवश्यक होता है, कुटुम्ब के माता पिता आदि वृद्ध जन घर की पाठशाला के अध्यापक (माष्टर) हैं, क्योंकि कुलपरम्परा से आया हुआ दया धर्म से युक्त खान पान और विचार पूर्वक बांधा हुआ सदाचार आदि कई आवश्यक बातें मनुष्यों को उक्त अध्यापकों से ही प्राप्त होती हैं अर्थात् माता पिता आदि वृद्ध जन जैसा बर्ताव करते हैं उनके बालकभी प्रायः वैसा ही वर्ताव सीखते और उसी के अनुसार वर्ताव करते है, हां इस में भी प्रायः ऐसा होता है कि माता पिता के सदाचार आदि उत्तम गुणोंको पुण्यवान् सुपुत्र ही सीखता है, क्योंकि-सात व्यसनों में से कई व्यसन और दुराचार आदि अवगुणोंको तो दूसरों की देखा देखी विना कहे ही बहुतसे बुद्धिहीन सीख लेतेहैं, इस का कारण केवल यही है कि-मिथ्या मोहनी कर्म के संग इस जीवात्मा का अनादि कालका परिचय है और उसी के कारण भविष्यत् में भी (आगामी को भी ) उस को अनेक कष्ट और आपत्तियां भोगनी हैं और फिर भी दुर्गति में तथा संसार में उस को प्रमण करना है, इस लिये वह काँकी आनुपूर्वी उस प्राणी को उस प्रकार की बुद्धि के द्वारा उसी तरफ को खींचती है, इसी लिये माता पिता और गुरु आदि की उत्तम सदाचार की शिक्षा को वह सिखलाने पर भी नहीं सीखता है किन्तु बुरे आचरण में शीघ्र ही चित्त लगाता है। यद्यपि ऊपर लिखे अनुसार कर्मवश ऐसा होताहै तथापि माता पिताकी चतुराई और उन के सदाचार का कुछ न कुछ प्रभाव तो सन्तान पर पड़ता ही है, हां यह अवश्य होता है कि उस प्रभाव में कर्माधीन तारतम्य (न्यूनाधिकता ) रहताहै, इस के विरुद्ध जिस घर में माता पिता आदि कुटुम्ब के वृद्ध जन खान और दन्त धावन नहीं करते, कपड़े मैले पहनते, पानी विना छाने पीते और नशा पीते हैं, इत्यादि अनेक कुत्सित १-क्योंकि मूर्ख पडोसी तो गगाजल में रहने वाली मछलीके समान समीपवर्ती योग्य पुरुष के गुण को ही नहीं समझ सकता है । २-सात व्यसनोंका वर्णन आगे किया जायगा ।
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy