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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ दुखती हों तो उस के पास बालक को नहीं जाने देना चाहिये, यदि बालक की आंख दुखनी आवे तो उस का शीघ्र ही यथायोग्य उपाय करना चाहिये, क्योंकि उस में प्रमाद (गफलत) करने से आंख को बहुत हानि पहुँचती है।
इस प्रकार से ये कुछ संक्षिप्त नियम बालरक्षा के विषय में दिखलाये गये हैं कि इन नियमों को जान कर स्त्रियां अपने बालकों की नियमानुसार रक्षा करें, क्योंकि जबतक उक्त नियमों के अनुसार बालकों की रक्षा नहीं की जायगी तबतक वे नीरोग, बलिष्ठ, दृढ़ बन्धान वाले, पराक्रमी और शूर वीर कदापि नहीं हो सकेंगे और वे. उक्त गुणों से . युक्त न होने से न तो अपना कल्याण कर सकेंगे और न दूसरोंका कुछ उपकार कर सकेंगे, इस लिये माता पिता का सब से मुख्य यही कर्तव्य है कि वे अपने बालकों की रक्षा सदा नियम पूर्वक ही करें, क्योकि ऐसा करने से ही उन बालकों का, बालकों के माता पिताओं का, कुटुम्ब का और तमाम संसार का भी उपकार और कल्याण हो सकता है ॥
यह तृतीय अध्याय का बालरक्षण नामक-चौथा प्रकरण समाप्त हुआ। इति श्री जैनश्वेताम्बर-धर्मोपदेशक-यति प्राणाचार्य-विवेकलब्धि शिष्यशील
सौभाग्य निर्मितः, जैनसम्प्रदाय शिक्षायाः
तृतीयोऽध्यायः ॥
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१-बालरक्षा के विस्तृत नियम वैद्यक आदि ग्रन्थों में देखने चाहिये ।
२-खयमसिद्धः कथ परार्थान् साधयितु शक्नोति, । अर्थात् जो खयं (खुद) असिद्ध (सर्व साधनों से रहित अथवा असमर्थ) है. वह दूसरों के अर्थों को कैसे सिद्ध कर सकता है ।