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________________ म. महावीर और उनका समय हरिवंशपुराण और त्रिलोकप्रज्ञप्तिसे उक्त शक-काल-सूचक पद्योंमें जो क्रमश: 'अभवत्' और 'संजादो' ( संजातः ) पदोंका प्रयोग किया गया है उनका 'हमा-शकराजा हुमा-अर्थ शकराजाके अस्तित्वकालकी समाप्तिका सूचक है, प्रारम्भसूचक अथवा शकराजाकी शरीरोलत्ति या उसके जन्मका सूचक नहीं। और त्रिलोकसारकी गाथामें इन्हीं जैसा कोई क्रियापद अध्याहृत ( understood ) है। यहाँ पर एक उदाहरण-द्वारा मैं इम विषयको और भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ। कहा जाता है और पाम तौर पर लिखने में भी प्राता है कि भगवान् पाश्वनाथसे भगवान् महावीर ढाई सौ (२५०) वर्षके बाद हुए। परन्तु इस ढाई सौ वर्ष बाद होनेका क्या अर्थ ? क्या पाश्र्वनाथके जन्मसे महावीरका जन्म ढाई सौ वर्ष बाद हुप्रा? या पाश्र्वनाथके निर्वाणसे महावीरका जन्म ढाई सौ वर्ष बाद हुमा ? अथवा पाश्वनाथके निर्वाणसे महावीरको केवलज्ञान ढाई सौ वर्ष बाद उत्पन्न हुआ ? तीनोंमेसे एक भी बात मत्य नहीं है। तब सत्य क्या है ? इसका उतर श्रीगुग्गभद्राचार्यके निम्न वाक्यमें मिलता है: पाश्र्वेश तीर्थ-सन्ताने पंचाशदाद्विशताब्दक। तदभ्यन्तर वायुमहावीरोऽत्र जातवान् ।।२७ ।। -महापुराण, ७४वा पर्व इसमें बतलाया गया है कि 'श्रीपार्श्वनाथ तीर्थकरसे ढाई सौ वर्षके बाद, इसी ममय के भीतर अपनी प्रायुको लिये हुए, महावीर भगवान् हुए' अर्थात पारवनाथके निर्वाणसे. महावीरका निर्वाग ढाई सौ वर्षके बाद हुआ। इस वाक्यमें 'तद्भ्यन्तरवायुः' (इमी समयके भीतर अपनी मायुको लिये हुए) यह पद महावीरका विशेषरण है । इस विशेषण-पदके निकाल देनेसे इस वाक्यकी जैसी स्थिति रहती है और जिस स्थितिमें ग्राम तौर पर महावीरके समयका उल्लेख किया जाता है ठीक वही स्थिति रिलोकसारकी उक्त गाथा तथा हरिवशपुराणादिकके उन शककालसूचक पद्यों की है । उनमें शक राजाके विशेषरण रूपसे 'तदभ्यन्तरवायु इस भाशयका पद अध्याहृत है, जिसे अर्थका स्पष्टीकरण करते हुए, ऊपरसे लगाना चाहिये । बहुत सी कालगणनाका यह विशेषणपद अध्याहृत-रूपमें ही प्राण जान पड़ता है। और इसलिये जहाँ कोई बात
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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