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________________ २८ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश लोकमें अति उच्च बन सकता है । इसकी दृष्टि में कोई जाति गहित नहींतिरस्कार किये जानेके योग्य नहीं-सर्वत्र गुणोंकी पूज्यता है, वे ही कल्याणकारी है, और इसीसे इस धर्ममें एक चाण्डालको भी व्रतसे युक्त होने पर 'ब्राह्मण' तथा सम्यग्दर्शनसे युक्त होने पर 'देव' माना गया है ।। यह धर्म इन ब्राह्मणादिक जातिभेदों को तथा दूसरे चाण्डालादि विशेषोंको वास्तविक ही नहीं मानता किन्तु वृत्ति अथवा प्राचारभेदके प्राधारपर कल्पित एवं परिवर्तनशील जानता है और यह स्वीकार करता है कि अपने योग्य गुणोंकी उत्तत्ति पर जाति उत्पन्न होती है और उनके नाम पर नष्ट हो जाती है x । इन जातियोंका आकृति आदिके भेदको लिए हुए कोई शाश्वत लक्षण भी गो-प्रश्वादि जातियोंकी तरह मनुष्य गरीरमें नहीं पाया जाता, प्रत्युत इसके शूद्रादिके योगसे ब्राह्मणी आदिकमें गर्भाधानकी प्रवृत्ति देखी जाती है,जो वास्तविक जातिभेदके विरुद्ध है। यो लोके त्वा नत: सोऽतिहीनोऽयतिगुरुयंत: । बालोऽपि त्वा श्रितं नौति को नो नीतिपुरु: कुतः ॥८२॥ -जिनशतके, समन्तभद्रः । + " न जातिगंहिता काचिद् गुणा: कल्याणकारणं । व्रतस्थमपि चाण्डालं तं देवा ब्राह्मणं विदुः ।। ११-२०३ ।।" ----पद्मचरिते, रविषेणः । "सम्यग्दर्शनसम्पन्नमपि मातंगदेह । देवा देवं विदुर्भस्मगूढांगारान्तरोजसम्" ॥२८॥-रत्नकरण्डे, ममन्तभद्रः । x "चातुर्वर्ण्य यथान्यच्च चाण्डालादिविशेषणं । सर्वमाचारभेदेन प्रसिद्धि भुवने गतं" ॥११-२०५।।- चरिते,रविवंगः । "प्राचारमात्रभेदेन जातीनां भेदकल्पनं । न जातिव॑ह्मरणीयास्ति नियता क्वापि तात्विकी" ॥१७-२॥ "गुणः सम्पद्यते जातिगुणध्वंसविपद्यते ।"॥३२॥ -धर्मपरीक्षायां, अमितमतिः । * "वर्णाकृत्यादिभेदानां देहेऽस्मिन्न च दर्शनात् । ब्राह्मण्यादिषु शूद्राद्य गर्भाधानप्रवर्तनात् ।।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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