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________________ अजुन-माला पीयूप-वी वाणी का रसास्वादन कराते हुए, भगवान महावीर भी उस वस्ती के बाग में या पधारे । सुदर्शन ने वीर प्रभु के दर्शन आदि का अनायास लाभ उठाना चाहा। सुदर्शन के माता-पिता ने, उन्हें, अर्जुन के अत्याचार भय दिखा कर, जाने से रोका । परन्तु सुदर्शन की भगवान् के श्री चरणों में भक्ति की भावना का प्रवाह प्रबल था । वे किसी भी कदर न रुके। भगवान के दर्शन को आखिरकार वे चल ही दिये । माग में उन्हें देखते ही अर्जुन ने यानिशी शक्ति के साथ उन पर धावा बोल दिया। परन्तु सच्चे श्रमणोपासक, धर्म-चोर, सेठ सुदर्शन, ज्यों के त्यो निर्भय और निश्चल रूप ले खड़े रहे। धीरज के साथ भूमि को उन्होंने परिमार्जित की। अरिहन्तों का नमन किया। फिर, सागारो अनशन व्रत को धारण कर, वीर प्रभु की भव-भय विदारक भक्ति में लीन वे हो गये। अर्जुन के शरीर में प्रवेश कर मुद्गर-पाणि यक्ष ने धावा तो सेठ पर किया; परन्तु सेठ के अद्वितीय तप और तेज के सम्मुख. वह उन का वाल तक वाँका न कर सका। तव तो बड़ा ही लजित हुआ । और, अर्जुन के शरीर को छोड़ कर, निकल भागा। यक्ष के पजे से मुक्त होते ही, अर्जुन धरती पर धड़ाम से जा गिरा । उधर सुदर्शन ने भी अपने को उपसर्ग-रहित जानकर, अपनी प्रतिज्ञा का यथाविध पालन किया । कुछ ही दर के पश्चात, अर्जुन को भी होश आया। उसने सेट का परिचय पूछा । यही नहीं, वह प्रभु के दर्शनार्थ भी उन के साथ हा लिया। महा प्रभु के दर्शन पार सदुपदेश से अर्जुन क भावों की भूमि एक-दम बदल गई । सच है, ' सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् । ' अर्थात् सत्संगति मनुश्य के लिए क्याक्या नहीं करती । अर्थात् सव कुछ कर देती है परन्तु । जव [४७]
SR No.010049
Book TitleJain Jagat ke Ujjwal Tare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPyarchand Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1937
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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