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________________ प्राचीन इतिहास निर्माण के साधन कारण, यदि दूसरे प्रमाण न होते तो, इतिहास में बड़ी गड़बड़ी मच जाती । प्रथम तो कई स्थानों में एक ही समय के राजवंशों को क्रमागत चतलाया है, जिससे उनका समय बहुत बढ़ गया है। उदाहरणार्थ, चन्द्रगुप्त मौर्य से लगाकर कैलकिल यवन नरेशों तक पुराणों के अनुसार २,५०० वर्ष का समय चीता। चन्द्रगुप्त का समय ईसवी सन् के पूर्व ३२० मैं मानने से फैलकिल यवनों का समय सन् २,२०० ईसवी में पढ़ता है। पर यथार्थ में कैलकिल यवनों का राज्य ईसा की छठवीं शताब्दि के लगभग रहा है। दूसरे, कई बड़े बड़े राजवंशों का पुराणों में कोई स्पष्ट उल्लेख तक नहीं पाया जाता । कुशान-वंश के कनिकादि प्रतापी राजाओं का, व पश्चिम के शफवंशी राजाओं का पुराणों में कहीं पता नहीं है । तीसरे, इनमें कोई खास सन् संवत् नहीं दिया गया, जिससे समय-निर्णय में बढ़ी कठिनाई पड़ती है। चौथे स्वयम् भिन्न भिन्न पुराणों के राजाओं के नाम व उनके राज्य-काल के विपय में विरोध पाया जाता है। ___ इन त्रुटियों के होते हुए भी पुराणों की ऐतिहासिक उपयोगिता कुछ कम नहीं है। जिस समय के लिए दूसरे कोई ऐतिहासिक साधन नहीं मिलते, अथवा जहाँ पर इनके कथनों का कोई प्रवल विरोधी प्रमाण नहीं पाया जाता, वहाँ सर्वथा पुराण ही प्रमाण हैं। प्रायः शिशुनागवंश से लगाकर मौर्य, शुंग, कण्व, आन्ध्र आदि वंशों की पूरी पूरी नामावलियां पुराणों ही से ली जाती हैं। पुराणों के निर्माण-काल के सम्बंध में बहुत विद्वानों का मत यह है कि इनकी रचना गुप्त राजाओं के समय में (ईसवी
SR No.010047
Book TitleJain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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