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________________ २८] प्राचीन इतिहास निर्माण के साधन समझते हैं, उन्हें इन ऊपर के अन्थों में कोई ऐतिहासिक महत्व दिखायी नहीं देगा। पर देश का पूरा और सच्चा इतिहाल वही है, जिसमें देश की धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक व आर्थिक अवस्था का सिलसिलेवार वर्णन पाया जावे। राजघरानों का लन्-संवतो-सहित वर्णन इतिहास का एक अंगमान है । इतिहास के दूसरे अंगों की पूर्ति के लिए ऊपर बताये हुए ढंग के ग्रंथों की छानबीन नितान्त आवश्यक है । देश का सच्चा गौरव इतिहास के इन दूसरे अंगों से ही विदित होता है। पुराण । ब्राह्मण साहित्य में प्राचीन इतिहास के लिए सबसे अधिक सामग्री हमें पुराणों, विशेषतः विष्णु, वायु, मत्स्य, ब्रह्माण्ड, भागवत, मार्कण्डेय और भविष्यपुराण, से मिलती है। इनमें महाभारत काल से लगाकर गुप्त-काल तक के राजाओं की वंशावलियाँ और राज्य करनेकी अवधि दी है, और सुख्य मुख्य घटनाओं का भी उल्लेख आया है। शिशुनागवंश (ई० लन् के पूर्व छठवीं शताब्दि ) के पूर्व के इतिहास के लिए तो इनके कथन विशेष उपयोगी नहीं हैं, पर शिशुनाग-वंश से आगे के राजाओं का इतिहास बहुत कुछ विश्वसनीय है । बीच बीच में इनके कथनों का समर्थन दूसरे प्रमाणों, जैसे विदेशियों के वर्णन व शिलालेख इत्यादि ले भी हो जाता है और इन्ही प्रमाणों के .प्रकाश में हमें पुराणों के कथनों में कुछ हेर फेर भी करने पड़ते हैं। पर पुराणों में कई ऐसी त्रुटियाँ पायी जाती हैं, जिनके
SR No.010047
Book TitleJain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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