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________________ विष्णुमुनि ने वलि ( नमुचि) को मारा । ● ६३ मारा नहीं तव ब्राह्मण सुभूम के मरे बाद ऐसे को दैत्य, राक्षस आदि कर के लिखा । परशुराम क्षत्रियों की हत्या से, सुभूम ब्राह्मणों की हत्या से मर के अधोगति में गये । . इस सुभूम चक्रवत्त से पहिले इस अंतर में छटा पुरुष पुंडरीक वासुदेव, आनंद बलदेव वली नाम प्रति वासुदेव को युद्ध में मार के छटा नारायण हुआ, और सुभूम के पीछे दत्त नाम वासुदेव, नंद नाम वलदेव प्रह्लाद प्रति वासुदेव को मार के सातमा नारायण हुआ । तदपीछे मिथिला नगरी में इच्वाकुवंशी कुम्भ राजा, प्रभावती राणी से मल्ली नाम पुत्री उगणीसमा तीर्थकर हुआ ! तदपीछे राजगृही नगरी में हरीवंशी सुमित्र राजा, उसकी पद्मावती राणी से मुनि सुत नामा तीर्थकर २०मां उत्पन्न हुआ, इनों के समय महापद्म नामा नवमा चक्रवर्त्ती हुआ, इन सवों का चरित्र ६३ शलाका चरित्र में देख लेना, इन महापद्म चक्रवर्त्ती के भाई विष्णुकुमार हुए, उनों का संबंध इहां लिखता हूं । हस्तिनापुर नगर में पद्मोत्तर नाम राजा, उसकी ज्वाला देवी राणीउनों का बड़ा पुत्र विष्णुकुमार और लघुभ्राता महापद्य हुआ, उस समयमें अवंती नगरी में श्री धर्मराजा का मंत्री नमुचि अपर नाम बल ब्राह्मण नेमुनि सुव्रत तीर्थकर के शिष्य श्रीसुव्रताचार्य के साथ धर्मवाद करा,. बाद में हारगया, तत्र रात्रि को नंगी तलवार लेके श्राचार्य को वन में मारने चला, रास्ते में पगस्तंभित होगये, यह स्वरूप प्रभात समय देख राजा ने राज्य से निकाल दिया, तब नमुचि बल उहां से निकल हस्तिनापुर में महापद्म युवराज की सेवा करने लगा, किसी समय तुष्टमान हो कर महापद्य ने कहा, जो तेरी इच्छा हो सो वर मांग, उस ने कहा किसीसमय ले लूंगा, अव राजा पद्मोत्तर विष्णुकुमार पुत्र के संग सुत्रत गुरु पास दीक्षा ले पशोत्तर मोक्ष गया, विष्णुकुमार तप के प्रभाव महालब्धि मान हुआ, इस अवसर में सुत्रताचार्य हस्तिनापुर में आये, तब नमुचिचत
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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