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________________ श्रीजैनदिग्विजय पताका (सत्यासत्यनिर्णय)। सीधा उहां से निकल हस्तिनापुर में आया, लोक कहने लगे, अरे तूं ऐसा सुर रूप जात का कौन है ? सुभूम ने कहा, राजपूत हूं, लोक कहने लगे, अरे इन्द्र, तूं इस ज्वलितांगार में क्यों आया है ? सुभूम ने कहा, परशुराम को मारने आया हूं, लोकों ने बालक जान के उसकी बात का कुछ खयाल नहीं करा, सुभूम उस दानशाला में पहुंच सिंहासन पर बैठगया, देव विनियोग से डादों की खीर बनगई, तब उसको खाने लगा, रक्षक ब्राह्मण सुभूम को । मारने दौड़े, तब उन ब्राह्मणों को मेघनाद विद्याधर ने मार डाला, तव कांपता होठों को चबाता क्रोधातुर हो परशुराम भागता २ आ पहुंचा, परशु मारने को चलाया, वह परशु बीच में से दूट पड़ा, उस परशु की विद्या देवी सुभूम के पुण्ययोग से भाग गई। सुभूम उस थाल को अंगुली पर धुमा के परशुराम को मारने फेंका, वह चक्र होकर परशुराम का शिर काट डाला, 'उस चक्र से सुभूम ८ मां चक्रवर्ती हुआ । इस कथा की नकल जो यह कथा ब्राह्मणों ने बनाई है सो यथार्थ नहीं है जैसे वो कहते हैं परशुगम जब रामचन्द्र को -मारने आया तव रामचन्द्र नरमाई से पगचंपी करके परशुराम का तेज हर लिया, तब परशु । हाथ से गिर पड़ा और फिर पीछा नहीं उठा सका। हे ब्राह्मणों ! वह रामचन्द्रजी नहीं थे, सुभूम चक्रवर्ती था, इस कथा कल्पित बनाने वालों ने परशुराम की हीनता दूर करने को रामचन्द्रजी की बात लिखी है। एक अवतार ने दूसरे अवतार की शक्ति खींचली परंतु यह नहीं सोचा कि दोनों अवतार अज्ञानी वन जायगे जब परशुराम आपही अपने अंश को कुहाड़े से काटने लगा इन से ज्यादा अज्ञानी कौन होगा और अवतार की शक्ति निकल जाने से परशुराम तो पीछे खलवत् निस्सार होकर मरा तो अवतार 'शक्ति रहित फिर तुम्हारे विष्णु में कैसे मिला होगा? इत्यादि, तद पीछे सुभूम पद्-खंड में विजय कर २१ वेर निब्राह्मणी पृथ्वी करी, अपनी समझ से किसी ब्राह्मण को जीता नहीं छोड़ा तब भय से ब्राह्मण व्यापार, खेती, नौकरी, रसोई आदिक चारों वर्गों का काम करने लगे। ऋषि वेष त्यागन ,फर वनोबास प्रायः त्याग दिया। सुभम उन्हों को अन्यवर्णी समझ कर
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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