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________________ श्री दिग्विजय पताका ( सत्यासत्य निर्णय ) । कितना काल व्यतीत होने से चंपापुरी में इच्वाकुवंशी वसु पूज्य राजा उसकी जया नाम राणी से वासुपूज्य नाम का १२मां तीर्थंकर उत्पन्न, हुआ । इन्हों के बारे में द्विष्ट वासुदेव और विजय बलदेव तारक प्रति वासुदेव को मारके दूसरा नारायण ३ खंड का भोक्ता हुआ । ५६ तदनन्तर कितना काल व्यतीत होने से कंपिलपुर नगरमें इक्ष्वाकुवंशी कृतवर्म नाम राजा उसकी श्यामा नाम राखी से श्री विमलनाथ नाम का तेरहवां तीर्थकर उत्पन्न हुआ, इन के बारे में तीसरा स्वयंभु वासुदेव, भद्र बलदेव, मैरक नाम प्रति वासुदेव को युद्ध में मार के ३ खंड का राज्याधिपति नारायण हुआ । तदनंतर अयोध्या विनीता नगरी में इक्ष्वाकुवंशी सिंहसेन राजा, उन की सुयशा नाम राखी से चौदहवां अनंतनाथ तीर्थंकरं उत्पन्न हुआ, जिस. को अन्य तीर्थी भी देव मानकर अनंत चौदस करते हैं। उन के बारे में पुरुषोत्तम चौथा वासुदेव, सुप्रभ बलदेव, मधुकैटभ प्रति वासुदेव को युद्ध में मार कर ३ खंडाधिपति नारायण हुआ । ' तदपीछे रत्नपुरी नगरी में इक्ष्वाकुवंशी, भानु नाम राजा, उस की सुव्रता नाम राणी से श्रीधर्मनाथ नाम का पनरमा तीर्थकर उत्पन्न हुआ, उस के बारे में पांचवां पुरुष सिंह वासुदेव और सुदर्शन वलदेव तथा निशुंभ नाम प्रति वासुदेव को मार के त्रिखंडाधिपति नारायण हुआ, जिसको नरसिंह अवतार अन्यतीर्थी कहते हैं, इय पांचों ही नारायण बलदेव प्रति व सुदेव १५ जीव जिनधर्मी अरिहंतों के भक्त थे । १५ में तीर्थकर और १६में तीर्थकरों के मध्य में तीसरा मघवा नामा और चौथा सनत्कुमार नामा ये दो चक्रवर्त्ती ६ खंड के भोक्ता साम्राद हुए ये भी अरिहंतों के भक्त जिनधर्मी थे । तदनंतर हस्तिनापुरी नगरी में कुरुवंशी विश्वसेन राजा उसकी अचिरा
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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