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________________ प्रदेव-स्वरूप। - - करनेवाला अदेव है। और जिस पर अनुग्रह (तुष्टमान्) होय उसको इंद्र, चक्रवर्ती, बलदेव, चासुदेव, महामंडलीक, मंडलीक राज्यादि का वर देवे, सुंदर अप्सरा स्त्री का संयोग, पुत्र परिवारादिक का संयोग जो करे, किसी को शाप देना, किसी को वर देना, ये परमेश्वर के कृत्य नहीं, रागी द्वेपी है वह मोच के ताई नहीं है, वह भूत प्रेत पिशाचादिकों की तरह क्रीड़ाप्रिय कथनमात्र देव है, आप ही राग द्वेष कर्म से परतंत्र है बह सेवकों को कैसे तार सकता है ? जो नाद, नाटक, हास्य, संगीत इन के रस में मग्न है, वाजा बजावे, पाप नाचे, औरों को नचावे, हंसे, कूदे, विषयवर्द्धक गायन गावे इत्यादि मोहकर्म के वश संसार की चेष्टा करता है ऐसे अस्थिर स्वभाषी नायिका भेद में मग्न, अपने भक्तजन को शान्तिपद कैसे प्राप्त करा सकता है ? किसी ने एरंड वृक्ष को कन्पवृक्ष मान लिया तो क्या वह कल्पवृक्ष का सारा काम दे सकता है, इस प्रकार मिथ्याष्टियों ने पूर्वोत चिन्हवालों को देव मान लिया तो क्या वे परमेश्वर हो सकते हैं। प्रथम लिखे जो १८ दूषण रहित वही परमेश्वर तरणतारण देव है। फिर जगत में ८४ लाख जीवयोनी है, उस में भैसे, बकरे आदि पंचेंद्रिय, तिथंच तथा मनुष्य हैं। इन जीवों को मरवाकर उन के मांस और रक्त से बलि लेकर संतुष्ट होने वाती वह जगज्जीवों का संहारकारणी जगदंबा वा जगज्जननी कैसे हो सकती है। जो माता होकर अपने बाल बच्चों का खून कर उस से प्रसन्न हो वह जगत्प्रतिपालका किस न्याय हो सकती है फिर जिसने ३ पुरुष उत्पन्न कर फिर उन तीनों की भार्या हो उनों से विषय सेवन करा वह निज पुत्रों की मार्या तीन पुरुषों से रमण करने वाली शील धारणी सती नहीं हो सकती। ऐसी ईश्वरी कदापि नहीं हो सकती, जिसने युद्ध में असंख्य मनुष्य गणादि जीवों का संहार करा ऐसी राग द्वेप से कलुषित चित्तवाली की सेवा कर इम कैसे शान्ति पद प्राप्त कर सकते हैं। फिर जो एक स्त्री के अंग से मैल का बना पुतला जिसका मस्तक अन्य ने काट डाला फिर पशु के मस्तक लगाने से जीवित करा गया वह अपने विघ्न को दूर करने
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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