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________________ श्रीजैनदिग्विजय पताका (सत्यासत्यनिर्णय) । कमंडल रखनेवाला परमेश्वर नहीं, कमंडल शुचि करने के लिये रखता है, अपवित्रता होती है उसके लिये कमंडल धारण किया है । परमेश्वर तो सर्वदा पवित्र है उसको कमंडल की क्या जरूरत है। तथा जो शरीर में भस्मी लगाता है और धूणी तापता है, नंगा होकर कुचेष्टा करता है, भांग, अफीम, धतूरा, खाता है, मद्य पीता है, मांस आदि अशुद्ध आहार करताहै, हस्ती, ऊंट, बैल, गर्दभ प्रमुख पर सवारी करता है वह अदेव है । भस्मी लगाना, धूणी तापना वह किसी वस्तु की इच्छा वाला है, जिसका अभी तक मनोरथ पूरा नहीं हुआ वह परमेश्वर नहीं। स्त्री की चिताभस्मी लगाने से मोह की विकल दशा जिसमें विद्यमान है, ऐसा मोह विडम्बनावाला कैसे ईश्वर हो सकता है ? जो नशा पीता है वह नशे के अमल में आनंद और हर्ष ढूंढता है और परमेश्वर तो सदा आनंद और सुख रूप है, रोगी वा विषयी पुरुष नशा विशेषतया धारण करते हैं, परमेश्वरे में वो कौनसा आनंद, नहीं था सो नशा पीने से उसे मिलता है । इस हेतु से नशा पीवे, मांसादि अभय खावे वह परमेश्वर नहीं। और सवारी चढ़ना है सो पर जीवों को पीड़ा उपजाना है। परमेश्वर तो दयावंत है किसी जीव को तकलीफ नहीं देता, सवारी चढ़े सो प्रदेव है और असमर्थ है श्लोक। स्त्रीसंगकाममाचष्टे द्वेषंचायुधसंग्रहः ॥ व्यामोहंचाक्षसूत्रादि घशौचं च,कमंडलुः ॥ १ ॥ अर्थ-स्त्री का संग काम कहता है, शस्त्र द्वेष को कहता है, जप माला व्यामोह को कहती है और कमंडल जो है सो अशुचिपने को कहता है।' तैसे जो जिस पर क्रोध करे उस को बध, बंधन, मारण, रोगी शोकी इष्टवियोगी, नरक में पटकना, निर्धन, दीन, हीन, क्षीण करे, ऐसा निग्रह
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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