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________________ श्रीजैनदिग्विजय पताका (सत्यासत्यनिर्णय) । अहंत के २५ नाम मुख्य हैं सो लिखते हैं अर्हन् जिनः पारगतस्त्रिकालविव, क्षीणाप्टकर्मा परमेष्टयधीश्वरः ।। शंभुस्वयंभूभगवान् जगत्पभुस्तीर्थकरस्तीर्थकरोजिनेश्वरः ॥१॥ स्याद्वाघभयदसर्वाः सर्वज्ञः सर्व दर्शिकेवलिनो देवाधिदेवबोधिद पुरुषोत्तमवीतरागाप्ता ॥ २ ॥ विशेष १००८ नाम जिन-सहस्रनाम देखो। अदेव-स्वरूप अदेव का स्वरूप लिखते हैं--जो पूर्वोक्त परमेश्वर भगवान् के गुणों से रहित जिन को संसारी जीवों ने अपना मत भिन्न दिखाने अपनी बुद्धि से परमेश्वर पद में स्थापन कर लिया है । बुद्धिमान् तो अदेव का स्वरूप उक्त देवाधिदेव के स्वरूप से विपर्यय लक्षणों वालों को समझ ही. लेंगे लेकिन जो विस्तार से लिखने से ही समझने वाले हैं उन्हों के लिये किंचित् लिखते हैं श्लोक। येस्त्रीशस्त्राक्षसूत्रादि रागाचंककलंकिताः॥ निग्रहानुग्रहपरास्तेदेवास्युनमुक्तये ॥१॥ नाव्याट्टहाससंगीतायपनवविसंस्थुलाः ॥ लंभयेयुः पदंशांतं प्रपन्नान्माणिनाकथम् ॥ २॥ इति योगशास्त्रे ।। अर्थ-जिसके पास स्त्री हो तथा उन की मूर्ति के पास स्त्री हो क्योंकि जैसा पुरुष होताहै उसकी मूर्ति भी प्रायः वैसी ही होतीहै । आज कल सर्वे चित्रों में उनका वैसा ही देखने में आता है सो मूर्ति द्वारा देव' का भी स्वरूप प्रगट होजाता है। इसलिये उनकी मूर्ति उन पुरुषों के जीवन . चरित्र ग्रंथानुसार बनी है जैसे शस्त्र, धनुष, चक्र, गदा, त्रिशलादि जिस ,
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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