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________________ देवाधिदेवस्वरूप | / दुःखी होगा वह भगवान् परमेश्वर कदापि नहीं। यह रति दूषण अर्हत में नहीं (८) आठमा दूपण अति, जिस की पदार्थ पर अप्रीति होगी वह तो प्रीति रूप दुःख से दुःखित है वह परमेश्वर नहीं, अर्हत परमेश्वर में रति दूषण नहीं (E) नत्रमा दूषण भय, जिरा से अपना ही भय दूर नहीं हुआ वह परमेश्वर कैसे हो सकता है । श्रईत सर्वदा निर्भय होते हैं। (१०) दशवां दूप जुगुप्सा है, मलीन वस्तु को देख के घृणा करना, परमेश्वर के ज्ञान में सब वस्तु का भान होता है, जुगुप्सा दुःख का कारण है, जो करता है वह परमेश्वर नहीं, श्रर्हत जुगुप्सा रहित है (११) ग्यारमा दूषण शोक है, शोक करने वाला परमेश्वर नहीं, अर्हत शोक रहित होते हैं (१२) बारमा दूषण काम हैं, जो स्त्रियों के साथ विवय सेचता है, स्त्री रखने वाला अवश्य कामी हैं ऐसे स्त्री भोगी को कौन बुद्धिमान् परमेश्वर कह सकता है, अत परमेश्वर ने काम को जय किया है (१३) तेवां दूषण मिथ्यात्व है, दर्शन मोह से लित वह परमेश्वर नहीं, अत भगवंत ने शुद्ध दर्शन प्राप्त मोह का चय किया हैं (१३) चौदवां दूषण ज्ञान है, जिस को मूढता है यह परमेश्वर नहीं, श्रईत भगवंत केवल ज्ञान कर विराजमान होते हैं (१५) पंदरवां दूषण निद्रा है, निद्रा प्राप्त को ज्ञान भान नहीं रहता, वह निद्रा लेने वाला परमेश्वर नहीं, अर्हत निद्रा रहित है (१६) सोलमा दूपण अविरति है, जिस को त्याग नहीं वह सर्व वस्तु का अभिलापी होता है ऐसी तृप्या वाला परमेश्वर नहीं, अर्हत भगवंत प्रत्याख्यान (त्याग) युक्त होते हैं (१७-१८) रुत्तरां और अठारवां दूषण राग और द्वेष है, राग द्वेप वाला मध्यस्थ सत्यवता नहींहोता, क्योंकि उस में क्रोध, मान, माया, लोभ का संभव है । भगवान् तो वीतराग, सम, शत्रु, मित्र सर्व जीवों पर समबुद्धि, न किसी को दुःखी न किसी को धन धान्य स्त्री आदि को दे सुखी करे, आत्मा का जन्ममरण रूप संसारपरिभ्रमण रूप दुःख मिटाने, तत्व उपदेश देकर सुखी करते हैं, यदि संसारसम्बन्धी दुःख वा सुख देवे तो परमेश्वर वीतराग करुणासमुद्र नहीं हो सके, राग द्वेष ! जिस के है वह संसारी सामान्य जीव है, परमेश्वर नहीं, अर्हत परमेश्वर वीतराग राग द्वेष रहित होते हैं।
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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