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________________ [‍ ] तब वे दीक्षा लेकर १४ पूर्वघर श्रुत केवली शय्यं भव सूरि वीर प्रभु के चौथे पट्टधर हुये जिन का लेख दशनैकालिक सूत्र की चूलिका की 8 गाथा में है । अन्य पुण्य रुचि जीव को जिन प्रतिमा व्यवहार नय निमित्त कारण पर्यंत निमित्त कारण होय तथा मार्गानुसारी को समकित की आठदृष्टि जो योगदृष्टि समुपाय में कही है उसमें से आदि की ४ दृष्टि वाले को ऋजु सूत्र नय पर्यन्त जिन प्रतिमा निमित्त कारण होता है और पूर्ण पुण्याढ्य को यह जिन प्रतिमा संपूर्ण एवं भूत सातमी नय पर्यंत कारण रूप हुई दिखती है इस भावना से यह सिद्धता हुई जिन प्रतिमा में संपूर्ण सात नय रूप निमित्त कारणता है पीछे तो कार्य का कर्ता जहां पर्यंत निपजावे उतना नीपजे । थापना श्री अरिहंत पद की मूल तो द्रव्य और भाव ये दोय निक्षेगवंत हैं। - लेकिन निमित्त कारण का चार निक्षेपा सात नय सयुक्त है सो कहा है निमित्तस्यापि सतप्रकारत्वनयप्रकारेण, निमित्तस्य द्वैविधं द्रव्यभावाद, तथोपादनस्यापि सप्तप्रकारत्वं नयोपदेशात् नो अभिहाणमययं, इति वचनात् । इसलिए निमित्त कारण से जिन प्रतिमा और जिनवर अरिहंत दोनों तुल्य हैं क्योंकि ये दोनों साधक जीव को तो निमित्त कारण है लेकिन उपादान नहीं, सर्व में निमित्तता है ऐसी सिद्धांत की बागी है। अरिहंत को वंदन करने का फल तथा अरिहंत की प्रतिमा वंदन का फल सूत्रों में एक सदृश लिखा है । नाम १, स्थापना २ और द्रव्य ३ ये तीन निक्षेपाभाव के कारण हैं । उक्तंच भाष्ये - श्रहवा नाम ठवणा, दव्वाह भाव मंगलगाए पाएय भाव मंगल, परिणाम निमित्त भावाओ ||१|| ये तीन निक्षेपा भाव के साधक हैं । इन तीन विना भाव निक्षेपा होय नहीं, नाम तथा थापना इन दो निक्षेपों को भाष्य में उपकारी कहा है, द्रव्य निक्षेपा पिंडरूप है इसलिये ग्रहण करीने नहीं और भाव निक्षेप रूपी है इसलिए नाम थापना निक्षेपे विना ग्रहण तथा सेवना होय नहीं इसलिये नाम, थापना ये दो उपकारी हैं (उक्तंच) वत्थुसरुर्वनामं * देखो हमारा सग्रह किया सिद्ध मूर्ति का दूसरा भाग छपा हुआ ३२ सूत्र में का सूत्र पाठ, - जिनेश्वर सावान् का वदन कल तथा जिन प्रतिमा वदन का फल एक तुल्य |
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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