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________________ . [ 2 ] संतोष का चौथा व्रत मानते हो वा नहीं? वा आजकल श्रावक पद धर्म का अमिः मान धरानेवाले पांचं २ सात २ विवाह करते हैं इन को क्या मानते हो- आत्मा धर्म तो स्त्रीपुरुषका समतुल्यहै फिर अधिकता तो यह है कि पापणीस्त्री छठे नरकसे आगे नहीं जाती। पुरुष सातवें नरक पर्यंत जाते है। पूर्ववद्ध मंद रस के नियाणे. से पांच पति से पंच समक्ष ब्याह किया लेकिन बारे के दिन का पति तो एक ही इच्छती थी, अन्य पुरुष का त्याग था उस द्रौपदी को कुसती कहने वाले यथा राजा पद्मनाम तथा कीचक ने यहां तो प्राण घात दंड पाया पर भव में नरकं पाया आखिर को यह गति होगी। नव नियाणा का लेख दशाश्रुतस्कंघसूत्र में देखो, नियाणा जन्मभर जीव के रहता है, द्रौपदी का नियाणा केवल ज्ञान और मुक्ति का बाधक था लेकिन सम्यक्त देश व्रत सर्वे व्रत का बाधक नहीं था। कईएक जना भास श्रावकपना पांचमागुणस्थानक अपनेमें मानतेहैं । कुगुरुओं के कहने मुजब वे अपने आचरण को प्रथम चित्त में विचार कर पीछे अपने में पांचमा गुण ठाना मानें, मिथ्यात्वी देवी, देवता, भूत, प्रेत यक्षादिक का बंदन नमन पूजा करते फिरते है। सूत्रों की आज्ञानुसार मिथ्यात्वी देवी देवता के मानने वाले में चौथा गुण स्थानक सम्यक्त का लेश मात्र भी अंश नहीं, जब सम्यक्त चौथा गुणठाणा नहीं तो पांचमा गुणठाणा कदापि उस में सिद्ध नहीं होता, नास्तिमूलं कुतोशाखा जिस की जड़ ही नहीं तो शाखा प्रशाखा उस वृक्ष की कैसे हो सकती है ! यदि वे कहें कि हम तो संसार खाते मिथ्यात्वी देवी देवताओं को मानते पूजते हैं, धर्म खाते नहीं उत्तर-हे महोदय ! भगवती स्त्र में सुगिया नगरी जो अब सूवे विहार नाम से प्रसिद्ध है, उन श्रावकों के वर्णन में लिखा हैं कि यक्ष, भूत, प्रेतादि अन्य मिथ्यात्वी देवी देवताओं का सहाय वे श्रावक नहीं चाहते थे, क्या वे संसारी नहीं थे ! इस भगवती सूत्र के लेख से सर्वत्र जिन धर्मी श्रावके अन्य देवी देवता मिथ्यात्वियों को कदापि वंदन; नमन, पूजनादि नहीं करते थे। प्रायः इस समय मिथ्याली जन कल्पित पौं को मानने वाले, वासी विदलादि अभक्ष के भक्षक, मिध्यात्वी देवी देवता के भक्त जनों के सम्यक्त सूत्रानुसार सिद्ध नहीं, सम्यक्त बिना न श्रावकात, न साधुव्रत प्राप्त हो सकता है । संसारी खाते जो मिथ्यात्व का कृत्य करे या पापारंभ करे उस का फल करने वाले की आत्मा भोगेगी - वा दूसरा भागेगा !
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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