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________________ [ अ ] ५ इनकी भक्ति, श्रद्धा, क्षायक सम्यक्तवंत, सर्वथा कदापि आदर न करे । इस रायप्रसेणी सूत्र के लेखानुसार सूर्याभदेव क्षाथक सम्यक्तवंत एक भव से मोक्षगामी ऐसा पाठ प्रगट सूत्र में लिखा है वह कदापि मिथ्यात्व का कृत्य नहीं करे, उन सूर्याभदेवता ने सिद्धायतन शाश्वत में सिद्ध प्रतिमा का वंदन सतरह भेद से द्रव्य पूजन पीछे एक सो आठ नये काव्य रचित से नमोत्थुणं संपूर्ण कहकर भावस्तवन पूजन किया तब एक ने कहा कि सूर्याभदेवता अस्त्र शस्त्र अन्य सिद्धायतन में रहे, देवताओं की भी पूजा की है (उत्तर) हे महोदय ! अस्त्र शस्त्र और अन्य सिद्धायतन में रहे यज्ञादि देव प्रतिमादि को केवल गंधोदक और चंदन का छींटा मात्र दिया है लेकिन वंदन वा नमन और तथा विधि द्रव्य पूजा तथा साक्षात् अर्हतकी जैसी भावस्तवना संपूर्ण नमोत्थुणं से स्तुति की और ऐसी ही स्तुति सिद्ध प्रतिमा के - सन्मुख की वह वंदन भावस्तवन किंचिन्मात्र भी पूर्वोक्त अस्त्र शस्त्र देव प्रतिमादि का नहीं किया है । इस तत्व विचार को हृदय में बिचारो तब कहा, क्षायक सम्यक्ती सूर्याभदेवता नृत्य गीत देखना, सुगना देवांगनारमण आदि अनेक श्रारंभ भी तो करता है ? हे महोदय ! इस कथन से तो आप सम्यक्त के ज्ञान से नितान्त अज्ञानी सिद्ध होते हो | यह नाटक देखना स्त्री भोगादि कृत्य अनत कहाता है, सम्यक्त का बाधक नहीं, यदि ऐसा मानोगे तो गृहस्थ श्रावक तुम्हारी समझ मुजब सब सम्यक्तहीन ठहर . जायंगे क्योंकि यह स्त्री रमणादि अत गृहस्थ श्रावक सेवते है। सम्यक्त अन्य है, व्रत अन्य है । अत सेवन से मिध्यात्व का बंध नहीं होता, अर्हत सिद्ध बिना अन्य देव का वंदन, पूजन, स्तवन तथा जिनोक्त तत्व श्रद्धान रहित गुरु की उपासना केवलीकथित धर्म बिना अन्यधर्म की श्रद्धारुचि इन तीन कृत्योंसे मिथ्यात्व का बंध होता है जो अनंत काल जन्म मरण कराता है । अत्रत सेवने वाले तद्भव निर्वाण अनंतजीवों ने पाया यथा चक्रवर्ती भरतादिक, इस सूर्यामदेवता की भोला'वन जिन प्रतिमा का वंदन द्रव्य भाव पूजन सम्यक्त की करणी में ज्ञाता सुल में द्रौपदी को दी है। जब सूर्याभ सम्यक्त निर्मल करने रूप जिन प्रतिमा की पूजा करी इस सूत्र लेख से द्रौपदी सम्यक्त धारिणी सिद्ध होगई फिर नारद को अती श्रपच्चखाणी जान कर न उठी, न बंदन किया, इस सूत्र के लेख से सम्यनत धारणी और श्रावक धर्म के धारनेवाली सिद्ध होगई और जो पांच पति धारनेवाली द्रौपदी को श्रावकव्रतधारणकर्त्ता सती नहीं मानते उनसे मेरा सवाल है कि १३ स्त्रीवाला 'महाशतक श्रावक जिसका कथन उपासक दशा सूत्र में लिखा है, इसको स्वदारा
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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