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________________ () हैहय बंशी काश्यप गोत्री आदि सब ने महावत धारी महात्मा अरिष्टनेमि मुनि को प्रणाम किया । नोट-यहां २२ य तीर्थड्वर का संकेत है, जिनका नाम ऊपर वेद के मन्त्रों में आया है। मार्कंडेय पुराण अ० ५३ में ऋषभदेव ने भरत-पुत्र को गजदे बनमें जाकर महा संन्यास ले लिया। नोट-यहां जैनियों के प्रथम तीर्थंकरका वर्णन है। भागवत के स्कन्ध ५१०२ १०३६६-७ मे जैनियोंके प्रथम तीर्थंकर श्रीऋषभदेवको महर्षि लिखकर उनके उपदेशको बहुत प्रशंसा लिखी है। भागवत के टीकाकार लाला शालिग्राम जी पृष्ठ ३७२ में इस प्रश्न के उत्तर में कि “शुकदेवजी ने ऋषभदेव को क्यों प्रणाम किया" लिखते है-"ऋषभदेवजी ने जगतको मोक्ष मार्ग दिखाया और अपने पापभी मोक्ष होने के कर्म किए, इसीलिए शुकदेव जी ने ऋषभदेव को नमस्कार किया है। ६. जैनधर्म हिन्दूधर्म की शाखा नहीं है । जैनधर्म हिन्दूधर्म की शाखा नही हो सकता है। क्योंकि जो जिसकी शाखा होता है उसका मूल भी वही होता है। जो हिन्दू कर्तावादी हैं उगसे विरुद्ध जैनमत कहता है कि जगत अनादि अकृत्रिम है, उसका कर्ता ईश्वर नहीं है। जो हिन्दू एक ही ब्रह्ममय जगत मानते है उनके विरुद्ध जैनमत कहता है कि लोक में अनन्त परब्रह्म परमात्मा, अनन्त संसारी आत्मा, पुद्गल आदि जड़ पदार्थ, ये सब भिन्न है। कोई किसी का खड नहीं। जो हिन्दू आत्मा या पुरुष को कूटस्थ नित्य या अपरिणामी मानते है उनसे विरुद्ध जैनधर्म कहता है कि आत्मायें
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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