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________________ ( २३३ ) जिनको जैन कलवार कहते हैं । ये हैहयवंशी या कलचूरी वंशी प्राचीन जैन हैं। (देखो सी. पी. सेन्सस रिपोर्ट सफा २३०) गुजरातमें अनहिलवाड़ा पाटन प्रसिद्ध जैनराजाओं का स्थान रहा है । पाटन का संस्थापक राजा वनराज जैनधर्मी था। इसने सन् ७० तक वहाँ राज्य किया। इसका वश चावड़ा था, जिसने सन् ५६ तक राज्य किया । फिर चालुक्य या सोलंकी गंश ने सन् १२४२ तक राज्य किया । प्रसिद्ध जैनराजा मूलराज, सिद्धराज व कुमारपाल हुए है। ८८. जगत की रचना क्योंकि जगत् का द्रव्यों का समुदाय है और सर्व द्रव्य सत् रूप नित्य है, इससे जगत् सत् रूप नित्य है। क्योंकि सर्व ही द्रव्य जगत् में काम करते हुए बदलते रहते हैं व परिवर्तित होते रहते हैं, इससे यह जगत् भी परिवर्तनशील अर्थात् अनित्य है । इस नित्यानित्यात्मक जगत् की रचना को जैन आगम किस तरह बताता है, इस बात का जानना हर एक जैनधर्म के जिज्ञासु को आवश्यक होगा। इसलिए हम इस प्रकरण में वह वर्णन संक्षेप में करेंगे। वर्तमान भूगोल की समालोचना करके जैन आगम में कहे हुए भूगोल वर्णन के सिद्ध करने का प्रयास पूर्ण सामग्री व पूर्ण पर्याप्त ज्ञान के प्रभाव से हम नहीं कर सकते । इतना अवश्य जानना चाहिये कि जगत् में ऐसा परिवर्तन हजागें लाखों वर्ष में होजाता है कि जहाँ भूमि है वहां पानी आजाता है व जहां पानी है वहाँ भूमि बन जाती है।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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