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________________ ( २३२ ) उसमें अनेक राजा जैनधर्म के अनुयायी थे। उनमें अति प्रसिद्ध राजा अमोघवर्ष हुए हैं जो श्री जिनसेनाचार्य के शिष्य थे व अन्तमें त्यागी होगये थे । यह आठवीं शताब्दिमें हुए हैं । इन्हों ने संस्कृत व कनडी में अनेक जैनग्रन्थ बनाये हैं । संस्कृत में प्रश्नोत्तरमाला व कनडी में कविराज मार्ग कनडीकाव्य प्रसिद्ध है । इसकी राजधानी हैदराबाद स्टेट में मलखण्ड या मान्य खेट थी, जहाँ प्राचीन जिनमंदिर अव भी पाया जाता है व कई मंदिर किले में दबे पड़े हैं । बम्बई के बेलगाम जिलेमें राष्ट्र वंशने ८ वी शताब्दि से १३ वी शताब्दि तक राज्य किया है; जिसके राजा प्रायः सर्व जैनधर्म के मानने वाले थे । वहाँ के शिलालेखों से उनका जैनमंदिरों का बनवाना प्रसिद्ध है । उनमें पहला राजा मेरड़ व उसका पुत्र पृथ्वीवर्मा था। सौंदन्तीमें राजा शांतिवर्मा ने सन् ६८० में जैन मंदिर बनवाया था | बेलगाम का किला व उसके सुन्दर पाषाण के मंदिर जैन राजाओं के बनवाये हुए हैं और लक्ष्मी देव मल्लिकार्जुन अन्तिम राजा हुये हैं धाड़वाड़ जिलेमें गङ्ग वंश के अनेक जैन राजा नौवीं दसवीं शताब्दि में राज्य करते थे । चालुक्य तथा पल्लववंश के भी अनेक राजा जैनी थे । बुन्देलखण्ड में जबलपुर के पास त्रिपुरा राज्यधानी रखने वाले हैहय वंशी कालाचार्य या कलचूरी या चेदी वंशके राजा लोग सन् ई० २४६ से १२वीं शताब्दि तक राज्य करते रहे । दक्षिण में भी इनका राज्य फैला था । इस वंशके राजा प्रायः जैनधर्म के माननेवाले थे । मध्यप्रान्त में अब भी एक जाति लाखों की संख्या में पाई जाती है,
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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