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________________ ( १८३) ७८. संक्षिप्त जीवनचरित्र श्री महावीर स्वामी श्री महावीर स्वामी अपने पूर्व जन्मों में भरत के पुत्र मारीच थे, जो श्री ऋषभ देवके साथ तप लेकर भ्रष्ट हो गये थे। यही मारीच भ्रमण करते हुए त्रिपृष्ठ नारायण हुए थे। ये ही नद राजाके भवमें उत्तम भावनाओंको भाकर १६वें स्वर्गमें इन्द्र हुए। वहां से आकर भरत क्षेत्र के विदेह प्रांतके कुन्डपुर या कुन्डग्राममें नाथवंशी काश्यप गोत्री राजा सिद्धार्थकी रानी त्रिशला या प्रियकारिणी के गर्भ में प्राषाढसुदी ६ को पधारे। चैत सुदी १३ को भगवान का जन्म हुआ। उस समय इन्द्र ने मेरु पर अभिषेक करके भगवान के वर्धमान और वीर ऐसे दो नाम रखे। प्रभुने आठवे वर्ष अपने योग्य श्रावक के १२ व्रत धार लिये, क्योंकि प्रभुको जन्म से ही तीन ज्ञान थे। वे धर्म को अच्छी तरह समझते थे। ____एक दिन संजय और विजय दो चारण मुनियों को कुछ सन्देह हुआ। बालक वीर के दूर से दर्शन प्राप्त करते ही उनके सन्देह मिट गये । तब उन्होंने सन्मति नाम प्रसिद्ध किया । एक दफे वनमें वीर कुमार अन्य वालको के साथ क्रीड़ा कर रहे थे। इनके वीरत्व की परीक्षा लेने को एक देव महासर्प का रूप रख उस वृक्ष से लिपट गया, जिसपर सव बालक चढ़े थे। सब बालक तो सर्प को देख कर डर गये और कूद कूद कर भाग गये, परन्तु वीर ने निर्भय हो उससे क्रीड़ा की। तव देव बहुत प्रसन्न हुआ और भगवान का अतिवीर नाम सम्बो धित कर वापिस चला गया।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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