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________________ (१६६) भरतक्षेत्र में जो तीर्थंकर पदके धारी होते हैं वे जगत में भ्रमण करने वाले जीवों में से दी होते है । जिसने तीर्थंकर होने से पहिले तीसरे भव में तपस्या करके व आत्मज्ञान प्राप्त करके, आत्मीक आनन्द की रुचि पाकर संसार के इन्द्रिय सुख को प्राकुलतामय जाना हो तथा सर्व जीवों का अमान मिटे व उनको सच्चा मार्ग मिले, ऐसी हद भावना की हो वही विशेष पुरुष विशेष पुण्य बांधकर तीर्थंकर जन्मता है। कोई ईश्वर या शुद्ध या मुक आत्मा शरीर धारण नहीं करता है। ___हर एक तीर्थङ्कर इतने पुण्यात्मा होते हैं कि इन्द्रादि देव उनके जीवन के पांच विशेष अवसरों पर परम उत्सव करते हैं। इन उत्सवों को पंचकल्याणक कहते है। १. गर्भ कल्याणक-जव माता के गर्भ में तिष्ठते है,तब सीपी में मोती के समान माता को विना कष्ट दिये रहते है। गर्भ समय माता निम्न सोलह स्वप्ने देखती है (१) हाथी (२) वैल (३) सिंह (४) लक्ष्मीदेवी का अभिषेक (५) दो मालाएँ (६) सूर्य (७) चन्द्र (6) मछली दो (६) कनकघट (१०) कमल सहित सरोवर (११) समुद्र (१२) सिंहासन (१३) देव विमान (१४) धरणेन्द्रभवन (१५) रत्नराशि (१६) अग्नि । जिन का फल महापुरुष का जन्म सूचक है। इन्द्रकी श्राशा से गर्भ से छ मास पूर्व से १५मास तक माता पिता के आंगन में रत्नों की वर्षा होती है। राजा रानी खूब दान देते हैं। __ गर्भ समय से अनेक दवियाँ माता की सेवा करती रहती हैं।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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