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________________ ( १४६ ) होता है। इसमें मक्जियों को कष्ट दिया जाता है, उनके प्राण लिये जाते व मधु में अनेक जन्तु पैदा होकर मरते हैं । ६. कृमि सहित फल न खाना-जैसे पीपल, वड, गूलर पाकर व श्रञ्जीर के फल । अन्य फलो को भी तोड़ कर देख, कर खाना । १०. पानी कुएं, बावड़ी, नदी का जो स्वभाव से बहता हो उसको दोहरे गाढ़े वस्त्र से छान, उसके जन्तुओ को वही पहुंचा कर जहां से जल लिया है वर्तना । ११. रात्रि को भोजन पान न करना, यदि अशक्य हो तो यथाशक्ति त्याग का अभ्यास करना । १२ देव पूजा आदि छः कर्मों में लीन रहना । ( २ ) व्रत प्रतिमा --- इस प्रतिमा का धारी वारह व्रतों का पालन करे । पांच व्रतों को अतीचार ( दोष ) रहित नियम से पालना । उनके सहायक सात शोलों को पालना व उनके अतीचारों के डालने का अभ्यास करना । पांच अणुव्रत ये है : १. हिंसा प्रयुक्त - सकल्प करके त्रस जन्तुओं को न मारना । इसके पांच प्रतिचार है-कपाय से प्राणीको बन्धन में डालना, लाठी चाबुक से मारना, अह्न उपाङ्ग छेदना, किसी पर अधिक बोझा लादना, अपने आधीन मनुष्य या पशुओं को भोजन पान समय पर न देना व कम देना, ये दोष न लगाने चाहिये । न्याय व शुभ भावना से यह कार्य किये जाये तो दोष नहीं है। २ सत्य अणुव्रत स्थूल झूठ न बोलना । इसके भी ५ अतीचार है- दूसरों को झूठा व मिथ्या मार्ग का उपदेश
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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