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________________ ( १४८ ) २. मांस न खाना और न उन पदार्थों को खाना जिन में मांस का संसर्ग हो । जैसे मर्यादा से बाहर का भोजन । भोजन की मर्यादा इस तरह है Expand , दाल, भात, कढ़ी आदि की छः घंटे की रोटी पूरी आदि की दिन भर, पकवान सुहाल लाडू आदि की २४ घण्टे की, जल विना अन्न व शक्कर से बनी हुई की पिसे आटे के समान अर्थात् ( भारतवर्ष की अपेक्षा ) वर्षा ऋतु में ३ दिन, उष्ण में ५ तथा शीत ऋतु में सात दिन । विना छान्न व जल के बूरे आदि की वर्षा में ७, उष्ण में पन्द्रह दिन तथा शीत में एक मास । दूध निकालने पर ४८ मिनट के भीतर औटे हुये की २४ घराटे, दही की भी २४ घण्टे, आचार मुरब्बे की २४ घण्टे । मक्खन को ४८ मिनट के अन्दर ता कर घी बना लेना चाहिये। उसका जहां तक स्वाद न बिगड़े, इत्यादि मर्यादा के भीतर भोजन करना । ३ मदिरा आदि सब तरह का मादक पदार्थ न लेना व जिस श्रौषधि में शराब का मेल हो न पीना । ४. श्राखेट - शौक से पशुओं का शिकार न करना व उन के चित्राम, मूर्ति आदि को कषाय से ध्वस न करना । ५. चोरी - पराया माल न चुराना न चोरीका माल लेना । ६. वेश्या - वेश्या सेवन न करना, न उनकी संगति करना, न उनका नाच देखना, न उनका गाना सुनना । ७. पर स्त्री-अपनी स्त्री के सिवाय अन्य स्त्रियों के साथ कुशील व्यवहार न रखना । ८.मधुन खाना, न उन फूलों को खाना जिनसे मधु एकत्र
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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